पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में नियमित अंतराल पर रेल हादसे हुए हैं. और हर हादसे में रेल मंत्रालय आतंकी साजिश का शक जताता रहा है. रेल मंत्रालय का रवैया चिंतित करने वाला है जो कई सवालों को जन्म देता है.
हर हादसे में आतंकी साजिश ढूंढ़ने वाला रेल मंत्रालय क्या इतनी जानकारी नहीं रख पाता कि किस ट्रैक पर कहां काम चल रहा है? हैरत की बात है कि रेलमंत्री सुरेश प्रभु रेलवे को अत्याधुनिक बनाने की डींगे हांकते रहते हैं.
सुरेश प्रभु के रेल मंत्री बनने के बाद रेल मंत्रालय ने एक नई तरकीब सीखी है. और तरकीब ये है कि हर हादसे के बाद पल्ला झाड़ने के लिए नए-नए एंगल ढूंढ़ना. इसमें आतंकी साजिश बिल्कुल नया फॉर्मूला है. कथित तौर पर आतंकियों को जिम्मेदार बताकर रेलवे अपनी जिम्मेदारी से बच जाता है और जनता भी उसे बेगुनाह मान लेती है.
पिछले तीन सालों में सुरेश प्रभु के रेलमंत्री रहते हुए तीन सालों में कम से कम 6 रेल हादसे हुए हैं. इनमें सैकड़ों लोगों की जान गई है. हजारों लोग घायल हुए हैं. लेकिन रेलवे ने कोई सबक नहीं लिया. रेलमंत्री हर बार सफर को सुरक्षित बनाने के दावे करते हैं. लेकिन फिर वही ढांक के तीन पात. कोई सुधार नहीं होता और एक नया हादसा हो जाता है.
हालांकि नियमित अंतराल पर रेल हादसे हो रहे हैं और उनको रोकने का कोई ठोस प्लान रेलवे के पास नहीं है. हादसे के बाद मरने वालों के परिजनों के लिए मुआवजे का ऐलान हो जाता है और अगले दिन से स्थिति सामान्य हो जाती है.
मुजफ्फरनगर रेल हादसे में मरने वालों की जिम्मेदारी कौन लेगा. सुरेश प्रभु ये कब समझेंगे कि रेल हादसे ट्वीट से नहीं रुकते.