म्यांमार सरकार प्रमुख और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने सेना के साथ अपनी सरकार के संबंधों के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि सेना के साथ उनके संबंध बुरे नहीं हैं और उनकी सरकार में शामिल सेना के कईं अधिकारी काफी अच्छे हैं।
म्यांमार के राखिने प्रांत में पिछले वर्ष सेना की कार्रवाई के बाद सुश्री सू की की चुप्पी के बारे में काफी चर्चा थी और संयुक्त राष्ट्र ने इसे एक समुदाय के दूसरे समुदाय पर हमले तथा सफाये की कार्रवाई करार दिया था।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें दूसरे सैन्य तख्ता पलट की आशंका है तो उन्होंने कहा, सेना के साथ हमारे संबंध इतने खराब भी नहीं हैं और उम्मीद है कि कुछ नए संवैधानिक प्रावधानों से सेना के प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, यह मत भूलें कि हमारी सरकार में तीन सदस्य कैबिनेट स्तर के हैं और ये तीनों सेना के अधिकारी रहे हैं और ये काफी अच्छे स्वभाव वाले हैं।
उन्होंने पिछले वर्ष की राखिने प्रांत की हिंसक वारदातों पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा, कि उस हिंसा तथा मानवीय संकट के जिम्मेदार कारणों का खतरा अभी तक टला नहीं है और जब तक सुरक्षा से जुड़े इस मसले का निपटारा नहीं हो जाता है तो विभिन्न समुदायों के बीच हिंसा का खतरा बरकरार रहेगा। यह एक ऐसी धमकी है जिसके काफी खतरनाक परिणाम हो सकते हैं और यह न केवल म्यांमार बल्कि इस क्षेत्र के दूसरे देशों तथा इससे दूर भी अपना असर डालेगा।
उन्होंने कहा, जैसा कि अधिकतर लोग सोचते हैं कि राखिने प्रांत में केवल मुसलमान ही हैं तो इस बात में कोई दम नहीं हैं क्योंकि वहां हिन्दू भी हैं और दूसरे छोटे समूह भी हैं और मैं आप लोगों से यहीं कहूंगी कि इन छोटे समूहों के बारे में भी ध्यान दें क्योंकि ये काफी तेज गति से कम होते जा रहे हैं। रोहिग्या शरणार्थियों की म्यांमार वापसी के बारे में उन्होंने कहा कि अभी इसकी कोई समय सीमा तय करना काफी कठिन है और इस बारे में कोई भी प्रकिया शुरू करने की जिम्मेदारी बंगलादेश की भी है।
उन्होंने कहा, कि जो लोग वहां गए थे उन्हें वापस भेजना बंगलादेश की जिम्मेदारी है। हम सीमा पर केवल उनका स्वागत कर सकते हैं और मेरा मानना है कि बंगलादेश को भी यह निर्णय लेना होगा कि वह इस प्रकिया को कितनी जल्दी पूर्ण कराना चाहता है।