भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिंदू परिषद का राममंदिर के नाम पर हिंदुओं को लुभाना महंगा पड़ सकता है। वाराणसी में हुई धर्म संसद में साधु-संतों ने अयोध्या की धर्मसभा को अधर्म सभा करार दिया है।
संतों का कहना है उप्र की योगी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तुलना सरदार बल्लभभाई पटेल से कर रही है। मूर्ति लगाने की यह होड़ गलत है। अयोध्या के कुछ साधु-संतों ने भी राज्य सरकार की इस कवायद को औचित्यहीन बताया है।
अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद की धर्मसभा के बाद भाजपा पूरे प्रदेश में राममंदिर आंदोलन को धार देना चाहती है। लेकिन, विहिप की धर्मसभा को लेकर साधु-संत दो फाड़ हो गए हैं। कुछ संतों का कहना है कि विहिप कौन होती है संतों का सम्मेलन बुलाने वाली।
वाराणसी में तीन दिन तक चली धर्म संसद में भी इस धर्मसभा को लेकर नाराजगी जतायी गयी। मोदी और योगी पर भगवान राम का अपमान करने का आरोप लगाया गया। संतों का कहना था कि मोदी सरकार और योगी सरकार भगवान राम का अपमान कर रही है।
योगी आदित्यनाथ के अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ति लगवाने के फैसले का भी साधुओं ने विरोध जताया है। उनका कहना है कि योगी के बयान से यह प्रतीत होता है कि भगवान राम और सरदार पटेल के बीच होड़ पैदा की जा रही है।
यह होड़ कतई उचित नहीं है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि भगवान राम की मूर्ति खुले में लगेगी तब पशु-पक्षी और जीव-जंतु मूर्ति के आसपास घूमेंगे, जिससे इसपर गंदगी फैलेगी। भगवान की मूर्ति को सिर्फ मंदिर में ही रखा जा सकता है।
स्वरूपानंद सरस्वती का भी कहना है कि भाजपा सरकार भगवान राम को सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ प्रतिस्पर्धा में उतारना चाहती है, दोनों की तुलना गलत है। वैसे भी भगवान राम पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं। राम कोई राजनेता नहीं थे, लिहाजा उनकी मूर्ति की नहीं मंदिर की जरूरत है। शंकराचार्य के मुताबिक, राम की मूर्ति लगाने का फैसला हिंदू विरोधी है।
राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का मानना है कि अयोध्या में धर्मसभा के आयोजन की जरूरत नहीं थी। इससे कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि विहिप को धर्मसभा के आयोजन के बजाय बीजेपी को चेतावनी देनी चाहिए थी कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण के लिए कुछ नहीं किया तो विहिप बीजेपी के खिलाफ चुनाव प्रचार करेगी।
उन्होंने कहा कि सिर्फ अध्यादेश लाकर ही अयोध्या में राम मंदिर बनाया जा सकता है, किसी और तरीके से नहीं। आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा विहिप, बजरंग दल, आरएसएस और बीजेपी में से कोई भी बोले तो समझो भाजपा ही बोल रही है। इनमें कोई अंतर नहीं है।
25 नवंबर को अयोध्या में जो कुछ हुआ, वह साधु-संतों का स्वत:स्फूर्त प्रयास नहीं था। धर्मसभा के लिए भीड़ जुटाने में भाजपा नेता भी पूरी तरह सक्रिय थे। सडक़ों पर उनके नाम से लगे बैनर तक इसके गवाह हैं। यह कहना है अयोध्या के एक प्रमुख अखबार के संपादक शीतला सिंह का।
सिंह का कहना है कि विवादित स्थल संबंधी जो संवैधानिक संकल्प व व्यवस्थाएं हैं, उनके खिलाफ़ आचरण संभव नहीं है। ऐसे में समस्त अधिग्रहीत भूमि विश्व हिंदू परिषद को सौंप दी जाये, यह संभव ही नहीं है क्योंकि इस संबंध में जो भी कानून बनेगा, संवैधानिक बाध्यताओं से मुक्त नहीं हो सकता।
जगद्गुरु राम दिनेशाचार्य ने कहा कि भगवान राम हिंदू समाज के प्राण हैं। अयोध्या की पहचान हैं। अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के लिए पूरे देश भर में हजारों राम भक्तों ने अपना जीवन दान दे दिया और उनकी आत्मा को तभी शांति मिलेगी, जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा।
चौबुर्जी मंदिर के महंत बृजमोहन दास ने कहा कि गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा से बड़ी प्रतिमा लगाने की बात निश्चित ही अच्छी योजना है। लेकिन भगवान राम और सरदार पटेल की प्रतिमा की बराबरी उचित नहीं है। हमारी मांग है कि पहले मंदिर बने फिर प्रतिमा लगाई जाये।
अयोध्या संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैया दास ने कहा कि भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, जबकि सरदार पटेल एक राजनैतिक चरित्र के व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस तर्क के साथ अयोध्या में श्रीराम की प्रतिमा बनाती है कि यह प्रतिमा सरदार पटेल की प्रतिमा से विशालकाय होगी तो संत समाज इसे स्वीकार नहीं करेगा।