आदर्श सरकार और सरकार के आदर्श में काफ़ी फर्क होता है

योगीजी धीरे-धीरे। भाजपा के ड्रायविंग सीट पर अभी मोदीजी नहीं, योगी जी बैठे हैं। योगीजी की भाजपा के भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी बात उठने लगी है। योगी भाजपा के भविष्य हैं और भविष्य के भाजपा भी। संघ इसे ही सेकेंड लाईन लीडरशीप कहता है। संघ के जानकारों को पता है कि संघ की तैयारी विभिन्न मोर्चों पर जारी रहती है अनवरत और अहिर्निश। आपको जो सोचना और समझना है, वह समझते रहिये।संघ की स्थिति हमेशा दत्त-चित्त यानी दक्ष की बनी रहती है।

रेस-कोर्स से लेकर कालीदास-मार्ग तक संघ की सियासी सड़कें सपाट हो गयी हैं। पथ संचलन जारी है। राहें रपटीली और कटीली भी नहीं रह गयी हैं। सारे अवरोध जमींदोज हो चुके हैं। राज्यसभा हो या राज्य सरकार, लुटियन जोन्स से लेकर लखनऊ तक योगी-मोदी की सरकार अभी सनसनी पैदा कर रही है।

विपक्ष भी इसे सनसनी ही करार दे रहा है जिसे पक्ष सृजन बता रहा है। विपक्ष सरकार से ‘कार्य’ की मांग कर रहा है किसी ‘कारनामे’ की नहीं। फ़िलहाल उत्तर प्रदेश में सनसनी है। इस सनसनी के खिलाफ में कहासुनी की किसी की हिम्मत अभी नहीं हो पा रही है। शायद हिम्मत के लिए इन्हें समय का भी इंतज़ार हो। विपक्ष मुंह खोले बैठा है।

आदर्श सरकार और सरकार के आदर्श दोनों अलग-अलग विषय हैं। इस सरकार के आदर्श क्या क्या हैं, इसके शुरुआती रुझान से समझा जा सकता है। नेहरूजी किसी धार्मिक राजनीति के खिलाफ थे। उनके तो अपने ही राजनीतिक धर्म थे। उनकी वही धर्मनिरपेक्ष राजनीति संघ के निशाने पर रही है। नेहरू को नारियल फोड़ने से भी परहेज था। नारियल के पानी में उन्हें धर्म के मन्त्र सुनायी पड़ते थे। उस कथित अधार्मिक राजनीति के आलोक में संघ की शाखा विस्तार लेती रही। अछूत भाजपा सर्वग्राह्य और स्वीकृत होती रही। आज देश की आधी आबादी पर संघ-साम्राज्य का आधिपत्य हो चुका है।

छोटे बड़े 14 प्रान्तों पर कब्ज़ा कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। यहां तक पहुंचने में संघ शतायु भी हो रहा है। नेहरू से लेकर नरेन्द्र तक राजनीति बहुतेरे करबट ले चुकी है। प्रधानसेवक नरेंद्र ने न जाने कितने नाथों की यात्रा पूरी की है? सोमनाथ से विश्वनाथ की मोदी की यात्रा के इनके अंतिम पड़ाव आदित्यनाथ ही तो थे जो पड़ाव हमें दिख रहा है।किसी कर्मकांड को लेकरयोगी सरकार को घेरना उचित नहीं।

कल्याण ने भाजपा का कल्याण किया था और भाजपा आज उनका कल्याण कर रही है। कल्याण के बाद योगी को भी केवल सहयोगी बनाकर नहीं रखा जा सकता था। योगी किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। योगी कोई परिणाम का नाम नहीं है। योगी एक पूरी प्रक्रिया का नाम है। योगी को संघ-परिवार का प्रति-उत्पाद कह देना बड़ी भूल होगी। योगी-सरकार संघ के सपनों की सरकार है। कालीदास मार्ग पर यज्ञ-हवन करने में कोई बुराई भी तो नहीं। योगी सरकारी दफ्तर में आरती करें इससे किसी को परहेज नहीं होना चाहिए। गोरखधाम से भी सरकार चले तो भी हमें परहेज नहीं है। हां! किसी अजान को लेकर आतंक व्याप्त हो जाय तो वह एक चिंतनीय मामला होगा। शुभ संकेत है कि सरकार अभी कब्रिस्तान और शमसान से दूर-दूर ही रह रही है।

सनसनी के मामले में भाजपा से आम आदमी पार्टी पीछे छुट चुकी है। आज मफलर का नहीं वल्कि महंथ का जलबा है। मिंया की जूती मियां के सर। आम आदमी पार्टी भी अब रसीली रही नहीं। इसने आजतक आस्वाद ही पैदा किया है। इसमें अब कोई झंकार नहीं। योगी की गगनभेदी टंकार से हम झंकृत हैं। यह है गवमेंट-एक्टिविज्म जिसकी योगी भरपाई कर रहे हैं। केजरीवाल के आतंकोंन्मुख आदर्श से ज्यादा मोहक योगी का यह आदर्शोन्मुख आतंकवाद है। योगी की इस शल्य चिकित्सा का दर्द झेलिये। इसी में आपके मर्ज का इलाज है। जितने जुमले हमारे जुबान पर हैं उसकी तत्काल अभिव्यक्ति सनसनी में ही है। इसलिए सरकार को काम नहीं केवल कारनामे में मन लगाना है।

योगी को कोई व्यसन पसंद नहीं है। रोमियो और तिरंगा गुटखा वाले रंगीला की अब खैर नहीं। बनारस की पहचान करने वाला पान का क्या होगा। मोदी के बनारस में पान है तो मुरली के कानपुर में गुटखा पर प्रभाव दिखने लगा है। चौरसिया का बरेटा हो मियां का बूचड़खाना, दोनों के सवाल एक ही है। इसे हिन्दू मुसलमान में बाँट कर ना देखें। कबाब की दुकान नहीं चलेगी तो क्या कद्दू की दुकान चलेगा।

किसान की व्यथा को कथा बनाने की कोशिश में लगी है योगी सरकार। यह भ्रम है जो मारक होगा।
विकास के मॉडल पर महंथ को चर्चा करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश किस तरह बन पायेगा इसकी चर्चा चप्पे चप्पे पर हो, हर दल और दालान में हो। सनसनी से सरकार चल सकती है समाज नहीं। जबतक रोटी की वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी नहीं की जाती है तब तक रोटी को छीनना एक आतंकवाद ही है। यह कोई राजधर्म नहीं है। प्रजा-वत्सल योगी को समाज से संवाद करना चाहिए। तुगलक अब केवल रोड का नाम है किसी फरमान का नहीं। उम्मीद है कि योगी इतिहास नहीं दुहराएंगे।

  • बाबा विजयेंद्र