भारतीय मुसलामानों से ज्यादा सहिष्णु और सब्र करने वाला कोई नहीं!

माननीय न्यायपालिका,
क्या आपने भारतीय मुसलमानों सा कोई सब्र करने वाला देखा ? क्या आपने इनके जैसा कोई सहिष्णु समुदाय देखा ? क्या आपने इनसा कोई संविधान का पालन करने वाला देखा ? क्या आपने इनसा कोई न्यायालय पर विश्वास करने वाला देखा ? अगर आपका जवाब है कैसे, तो सुनिए।

इतिहास बताता है कि बाबरी मस्जिद वजूद के 40 साल बाद बाबर के ही पोते अकबर के कार्यकाल में गोस्वामी तुलसीदास के लिखे “राम चरित मानस” के बाद आज की अयोध्या का जन्म होता है, जहाँ बाबरी से दो किलोमीटर दूर एक क्षेत्र में महाराजा दशरथ का पूरा राजभवन भी बाबरी के सामने बनाया गया। अयोध्या के पश्चिमी छोर पर रामकोट मंदिर बनाया गया और यह अयोध्या में पूजा का प्रमुख स्थान बना , यह सभी को पता है कि रामकोट मंदिर इसलिए महत्वपूर्ण है कि यही माना गया कि यहीं पर रामचंद्र जी का जन्म हुआ, यह अयोध्या ही नहीं अयोध्या आने वाला बच्चा बच्चा जानता है। राम तथा सीता का निज भवन जिसे कनक भवन के नाम से जाना जाता उसका निर्माण भी बाबरी की आँखों के सामने ही हुआ , फिर इसी अयोध्या में हनुमानगढ़ी मन्दिर, राघव जी मंदिर, सीता रसोई और वह तमाम भवन बनाए गये जिसमें आज भी राजा दशरथ उनकी तीनों रानियों के कक्ष और अन्य सभी महत्वपूर्ण स्थान उपस्थित हैं जिसका वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने “राम चरित मानस” में किया है, जबकि बाबरी मसजिद इन सभी महत्वपूर्ण धार्मिक इमारतों से 2 किमी दूर है, और अपने वजूद से 1885 तक यानी 350 वर्ष चुपचाप शांति से अयोध्या के बदलते स्वरूप को देखती रही, न किसी ने इस जगह किसी अन्य धार्मिक स्थल की बात कही और न किसी ने बाबरी पर ऊंगली उठाई, तब तक हम केवल भारतीय बनकर रहते थे। तब भारत में बाबरी मुसलमानों की इबादतगाह थी।

फिर अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान 1885 में शुरु हुआ बाबरी विवाद जिसे कुछ लोगों ने बड़ी चालाकी से भारत की सदियों से चली आ रही तहजीब का कत्ल करने में इस्तेमाल किया, 1885 में “महंत रघुवीर दास” ने फैजाबाद न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि “जन्म स्थान एक चबूतरा” जो मस्जिद से अलग उसके सामने है जिसकी लंबाई पूर्व-पश्चिम इक्कीस फिट और चैड़ाई उत्तर दक्षिण सतरह फीट है। इस “चबूतरे” की महंत स्वयं व हिंदू इसकी पूजा करते हैं।” इस दावे में यह भी कहा गया था कि यह चबूतरा चारों ओर से खुला है। सर्दी गर्मी और बरसात में पूजा करने वालों को कठिनाई होती है। इस लिए इस पर मंदिर बनाने की अनुमति दी जाए। लेकिन सरकार ने मंदिर बनाने से रोक दिया है इस लिए न्यायालय सरकार को आदेश दे कि वह मंदिर बनाने दे।

सरकारी अभिलेखों और अदालती कार्यवाही में दर्ज है कि 24 दिसंबर 1885 को फैजाबाद के सब जज पं. हरिकृष्ण ने महंत रघुवीरदास की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि बाबरी मस्जिद के सामने मंदिर बनाने की इजाजत देने से हिंदू-मुसलमान के बीच झगड़े और खून खराबे की बुनियाद पड़ जाएगी। फैसले में यह भी कहा गया था कि मंदिर मस्जिद के बीच एक दीवार है जो दोनों पूजा स्थलों को एक दूसरे से अलग साबित करती है। मंदिर और मस्जिद के बीच यह दीवार 1857 से पहले बनाई गई थी। फैजाबाद के सब जज पं. हरि कृष्ण के फैसले के खिलाफ “राम जन्म स्थान” के महंत रघुवीर दास ने फैजाबाद के जिला जज कर्नल “जे आर्य” के यहां अपील की जिसका मुआयना करने के बाद इसे 16 मार्च 1886 को उस अपील को भी खारिज कर दिया गया। फिर जिला जज के इस फैसले के खिलाफ महंत रघुवीर दास ने ज्यूडीशिनल कमिश्नर जिसके पास पूरे अवध के लिए हाईकोर्ट के समान अधिकार थे, उनके पास अपील की जिसके बाद उन्होंने भी अपने फैसले के जरिए इस अपील को एक नवंबर 1886 को खारिज कर दिया ( पूरे प्रकरण की कापी कोई भी अदालतों से प्राप्त कर सकता है)।

इसके बाद 1885 से 1949 तक यानी 64 वर्ष तक ये विवाद नहीं के बराबर उठा, और पूरे देश ने एकजुट हो कर आजादी की लड़ाई लड़ी, क्या हिंदु क्या मुसलिम क्या सिख और क्या इसाई सभी ने कुर्बानियां दीं और भारत आजाद हो गया, लेकिन किसे पता था की आजादी के मात्र दो वर्ष बाद फिर से यह विवाद भड़क उठेगा, और फिर शुरु होगा मुसलमानों के सब्र का एक लंबा सफर जो आज 68 साल बाद भी कायम है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ध्यान दिजियेगा नीचे के निम्न बिंदुओं पर।

  • 1949: भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गयीं. कथित रुप से कुछ बहुसंख्यकों ने ये मूर्तियां वहां रखवाईं थीं. मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. 23 दिसंबर 1949 को दर्ज हुई एफआईआर में इस घटना की सूचना संबंधित थाने के कांस्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को दी जिसमें अयोध्या के पुलिस स्टेशन के ऑफिसर इंचार्ज ने मुख्य रूप से तीन लोगों को नामजद किया था – अभिराम दास, राम शकल दास और सुदर्शन दास , इसके अलावा 50 से 60 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी दंगा भड़काने, अतिक्रमण करने और एक धर्मस्थल को अपवित्र करने का मामला दर्ज किया गया था। इस एफआईआर का क्या हुआ आज तक किसी को पता नहीं। खुद देखिए उस “एफआईआर” की भाषा जो सरकारी अभिलेखों में दर्ज हुई , ध्यान रखियेगा कि यह अभिलेख स्वतंत्र भारत के सरकारी अभिलेख में दर्ज एक एफआईआर है ना कि मुगल औरंगजेब के शासन काल के अभिलेख में दर्ज कोई फरमान।
    “50 से 60 लोगों का एक समूह बाबरी मस्जिद परिसर के ताले को तोड़कर, दीवारों और सीढ़ियों को फांदकर अंदर घुस आए और श्रीभगवान की प्रतिमा वहां स्थापित कर दी। साथ ही उन्होंने पीले और केसरिया रंग में सीता और रामजी, आदि की तस्वीरें मस्जिद की भीतरी और बाहरी दीवारों पर बना दीं। मस्जिद में घुसपैठ करनेवालों ने मस्जिद को ‘नापाक’ किया है।”
    जिसके बाद कारवाई न होकर इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया गया, फिर भी मुसलमानों ने न्यायपालिका पर विश्वास किया और अदलिया से न्याय की मांग की।
  • 1984: कुछ बहुसंख्यकों ने विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में राम जी के जन्म स्थल को “मुक्त” करने और वहाँ राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया। बाद में इस अभियान का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया, लेकिन मुसलमानों ने अदलिया पर भरोसा नहीं छोड़ा।
  • 1986: ज़िला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाज़े पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया, जो की अदलिया के कानुनी दायरे में रही हमेशा।
  • 1989: विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज़ किया और विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी।लेकिन मुसलमानों ने सब्र रख न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
  • 1990: विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को कुछ नुक़सान पहुँचाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वार्ता के ज़रिए विवाद सुलझाने के प्रयास किए मगर अगले वर्ष वार्ताएँ विफल हो गई, मुसलमानों ने उस समय भी न्यायालय पर विश्वास दिखाया।
  • 1992: विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया।इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए। बताइए की क्या बीत रही थी भारतीय मुसलमानों पर उस दिन जब अल्लाह के घर को शहीद कर दिया गया, और तब भी मुसलमानों ने न्यायालयपर विश्वास दिखाया।
  • 2001: बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर तनाव बहुत बढ़ गया था उसपर विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने के अपना संकल्प दोहराया, लेकिन मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
  • जनवरी 2002: अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया, मुसलमानों ने कहा हमें न्यायपालिका पर विश्वास है।
  • फ़रवरी 2002: भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया। विश्व हिंदू परिषद ने उसी 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरु करने की घोषणा कर दी। सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठा हुए थे, मुसलमानों ने तब भी न्यायालय पर विश्वास दिखाई।
  • 15 मार्च, 2002: विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात को लेकर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग आठ सौ कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं. और ठी 22 जून 2002 को विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की माँग फिर से उठाई, तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास दिखाया।
  • जनवरी 2003: रेडियो तरंगों के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, लेकिन अंत मे कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला। फिर भी मुसलमान न्यायालय के फैसले का इंतेजार करते रहे।
  • मार्च 2003: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया, बताइए केंद्र का यह अनुरोध कहाँ तक सही था ? तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास रखा।
  • अप्रैल 2003: इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया कि उसमें मंदिर से मिलते जुलते अवशेष मिले हैं। लेकिन उसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया, फिर भी मुसलमानों ने न्यायपालिका पर विश्वास बनाए रखा।
  • मई 2003: सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किए। मुसलमान न्यायालय से उनपर कारवाई की उम्मीद लगाए रहा।
  • जून 2003: काँची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई कि जुलाई तक अयोध्या मुद्दे का हल निश्चित रूप से निकाल लिया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, और हाईकोर्ट ने आडवाणी पर आपराधिक मुक़दमा चलाने की अनुमति नहीं दी है। फिर भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
  • अगस्त 2003: भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए। मुसलमान न्यायालय के फैसले का इंतेजार कर रहा था।
  • अप्रैल 2004: आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा। मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
  • जुलाई 2004: शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सुझाव दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए। तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बनाए रखा।
  • जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया, तब मुसलमान न्यायालय से इंसाफ की उम्मीद कर रहा था।
  • 06 जुलाई 2005 : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के दौरान ‘भड़काऊ भाषण’ देने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी को भी शामिल करने का आदेश दिया। इससे पहले उन्हें बरी कर दिया गया था। मुसलमानों को फिर भी न्यायालय पर विश्वास था।
  • 28 जुलाई 2005 : लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में रायबरेली की एक अदालत में पेश हुए। अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ आरोप तय किए. मुसलमान का न्यायालय पर विश्वास बरकरार था।
  • 20 अप्रैल 2006 : कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिव सेना की ‘मिलीभगत’ थी. पर उनपर कोई कारवाई नहीं हुई, फिर भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बरकरार रखा।
  • जुलाई 2006 : सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ काँच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया। इस प्रस्ताव का मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया और कहा कि यह अदालत के उस आदेश के ख़िलाफ़ है जिसमें यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए गए थे। और न्यायालय से इंसाफ की तलब की।
  • 19 मार्च 2007 : कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने चुनावी दौरे के बीच कहा कि अगर नेहरू-गाँधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती। बाबरी पर राजनीति की गई तब भी मुसलमानों ने न्यायपालिका पर विश्वास बरकरार रखा।
  • 30 जून 2009: बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जाँच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी. सात जुलाई, 2009: उत्तरप्रदेश सरकार ने एक हलफ़नामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फ़ाइलें सचिवालय से ग़ायब हो गई हैं। तब भी मुसलमानों ने न्यायालयपर विश्वास बरकरार रखा।
  • 24 नवंबर, 2009: लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश हुई। जिसमे आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया और नरसिंह राव को क्लीन चिट दी। तब मुसलमान न्यायालय से उम्मीद लगाए बैठे थे।
  • 20 मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में ख़ारिज हो गई। तब भी मुसलमानों ने न्यायालय पर विश्वास बरकरार रखा।
  • 26 जुलाई, 2010: रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी. 8 सितंबर, 2010: अदालत ने अयोध्या विवाद पर 24 सितंबर को फ़ैसला सुनाने की घोषणा की. 17 सितंबर, 2010: हाईकोर्ट ने फ़ैसला टालने की अर्जी ख़ारिज की। और मुसलमानों का सब्र बरकरार था न्यायालय के फैसले के इंतेजार में ।
  • 30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित कर अयोध्या में विवादित जमीन को राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांटने का फैसला किया था, इलाहाबाद उच्चन्यायालय में जब ज़मीन के मालिकाना हक को लेकर चल रहे मुकदमें के फैसले में काग़जात और सबूत के आधार पर फैसला ना करके आस्था के आधार पर ज़मीन को तीन टुकड़ों में बाँट दिया। फिर भी मुसलमान शांतिपुर्वक सवाल किये कि अगर वह ज़मीन जहाँ बाबरी खड़ी थी वहाँ श्रीराम जी पैदा हुए थे और यह साबित किया गया तो वह टुकड़ों में क्यो बांटा गया ? , मालिकाना हक के मुकदमे के फैसले में ज़मीन का मालिक एक पक्ष को ही अदालत घोषित करती है ना कि बटवारा करती है। फैसला किसी एक के हक़ में देनी चाहिए ।
  • जनवरी 2011: हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, कयोंकि मुसलमानों को न्यायालय पर विश्वास है।
  • मार्च 2011: सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद मामले में बीजेपी नेता एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शिव सेना नेता बाल ठाकरे सहित 21 लोगों के खिलाफ नोटिस जारी किया। क्योंकि सीबीआई ने हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें ये नेता बरी हुए थे।
  • 21 मार्च 2017: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के एक मात्र आस को तोड़ दिया, न्यायालय पर विश्वास को कमजोर कर दिया और बाबरी मामले में मध्यस्थता की पेशकश की। चीफ जस्टिस जे एस खेहर के मुताबिक अगर दोनों पक्ष राजी हो तो वो कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।

माननीय न्यायालय, अब बताए के मुसलमानों के सब्र का कोई पर्यायवाची है ? और कृपया ये भी बताएं कि अगर सुलह से इसका हल होता तो आप ने 64 वर्ष का लंबा वक्फा क्यो लिया ? मुसलमानों के विश्वास का ये कैसा परिणाम रखा है आपने ? 64 वर्ष से सब्र की मूर्ति बने हुए अल्पसंख्यक समुदाय ने हमेशा आपकी गरीमा का ख्याल रखा है। क्या यह सत्य नहीं की सब्र का दुसरा नाम ही मुसलमान है ?
अल्पसंख्यकों से सुलह तब कौन करेगा जब मामला ऐसा है जिससे देश की राजनीति जीवित है ? क्या बहुसंख्यक समुदाय के लोग अल्पसंख्यक समुदाय के किसी भी प्रकार के पहल को स्वीकार करेंगे ?
आप खुद फैसला क्यो नहीं करते ? या फिर इस बात पर यकीन कर लिया जाये कि इतने वर्षो बाद भी इस बात का कोई सबूत नही मिला जिससे साबित हो कि बाबरी मस्जिद को राम मंदिर तोड़ के बनाया गया था ?

माननीय न्यायपालिका, मुसलमान आज भी संविधान का उसी प्रकार पालन करता है जैसे कल करता था और आज भी कोशिश कर रहा कि आपकी विश्वसनीयता बरकरार रहे, कृपया आप उनके सब्र को देख फैसला सुनाएं, भारतीय मुसलमान न्यायपालिका के फैसले को कबुल करेगा, परंतु बीच का रासता विवादों को और बढ़ाएगा।

  • अशरफ हुसैन