आज सुबह से आप अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बारे में सुन रहे होंगे. ख़बरों के इस शोर में शायद आपको ऐसा भी महसूस हुआ होगा… जैसे अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कल से ही शुरू होने वाला है. लेकिन हम ये स्पष्ट करना चाहते हैं कि ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है, राम मंदिर के निर्माण का रास्ता अभी बहुत लंबा है. लेकिन इतना ज़रूर है कि आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से राम मंदिर के रास्ते में आने वाला एक कानूनी स्पीड ब्रेकर हट गया है. हमने सुप्रीम कोर्ट के 153 पन्ने के इस फैसले को पढ़ा है और हम इसका एक गहरा DNA टेस्ट करेंगे.
सबसे पहले आपको ये पता होना चाहिए कि ये फैसला क्या है ? चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने आज 2-1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया है कि वर्ष 1994 के इस्माइल फारूकी मामले को संवैधानिक पीठ के पास नहीं भेजा जाएगा.
यहां आपको ये भी पता होना चाहिए कि 1994 के जिस मामले की बात हो रही है, वो मामला क्या था? वर्ष 1994 के इस्माइल फारूकी मामले में ये कहा गया था कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ना..इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं है और मुसलमान कहीं पर भी नमाज़ पढ़ सकते हैं . यहां तक कि खुले में भी नमाज़ पढ़ी जा सकती है.लेकिन बाबरी मस्ज़िद के पक्षकार 1994 के इस फैसले से सहमत नहीं थे . उनकी तरफ से ये कहा गया था कि 1994 का फैसला पक्षपातपूर्ण था. और मस्जिद में नमाज़ पढ़ना, इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है .
इसीलिए अयोध्या विवाद पर सुनवाई कर रही बेंच के सामने बाबरी मस्ज़िद के पक्षकारों की तरफ से ये मांग की गई थी कि ‘अयोध्या विवाद पर सुनवाई करने से पहले वर्ष 1994 के इस्माइल फारूकी केस को दोबारा समीक्षा के लिए संवैधानिक पीठ को भेजा जाए . ‘ आज के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्ज़िद के पक्षकारों की मांग को खारिज कर दिया है. और इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि 1994 के इस्माइल फारूकी केस का अयोध्या विवाद के मुख्य केस पर कोई असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि 1994 का मामला सिर्फ़ ज़मीन के अधिग्रहण के संदर्भ में था .
हालांकि 3 में से 1 जज जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए था और उसके बाद ही ज़मीन के मालिकाना हक की सुनवाई होनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राम मंदिर के पक्षकारों को लग रहा है कि इस फैसले के बाद वर्ष 2019 तक राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा लेकिन बाबरी मस्ज़िद के पक्षकारों का कहना है कि आज के फैसले का अयोध्या विवाद पर कोई असर नहीं पड़ेगा .
आज हमने सुप्रीम कोर्ट के 153 पन्नों के फैसले का पूरा अध्ययन किया है. और हम आपको बहुत आसान भाषा में समझाएंगे कि इस फैसले का अयोध्या विवाद पर क्या असर पड़ने वाला है .
आज के फैसले के बाद अयोध्या विवाद के मुख्य मामले पर सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है . सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा है कि 29 अक्टूबर से यानी अब से लगभग एक महीने बाद अयोध्या विवाद के Title Suit की सुनवाई दोबारा शुरू की जाएगी . अगर सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के इस्माइल फारूकी मामले के फैसले को संवैधानिक पीठ में समीक्षा के लिए भेज दिया होता.. तो अयोध्या विवाद की मुख्य याचिका पर सुनवाई टल सकती थी.
अयोध्या में विवादित ज़मीन पर मालिकाना हक किसका है ? इस सवाल पर फैसला सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना पड़ता कि मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ना, इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं ? आप इसे एक तरह का कानूनी स्पीड ब्रेकर भी कह सकते हैं.
लेकिन अब ऐसी कोई रुकावट नहीं है. वर्ष 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अयोध्या विवाद में ये फैसला दिया था कि विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया जाए. तब हाईकोर्ट ने कहा था कि इसमें से एक हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाए. दूसरा हिस्सा रामलला विराजमान को और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. आपको बता दें कि ये विवादित ज़मीन कुल 2.77 एकड़ है.