गुजरात दंगों के पीड़ित 15 साल बाद भी बदहाल: उनकी कालोनी में स्कूल, अस्पताल और पानी तक नहीं

गुजरात दंगों को 15 साल बीत गए हैं लेकिन अभी तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है। इसका एक उदाहरण गोधरा दंगा से प्रभावित लोगों के लिए बनाई गई कॉलोनी है जहाँ आज तक स्कूल, अस्पताल और पानी तक की सुविधा नहीं है। इसको सिटीजन नगर कहा जाता है जहाँ 116 परिवारों तथा अन्य कई को 2003 में बसाया गया था। इसके मुख्य द्वार पर सिटीजन नगर का बोर्ड लगा है जो करीब 135 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यह स्थान कभी अहमदाबाद का कचरा डंप करने का स्थान था।
यहां के निवासियों का कहना है कि 15 साल के बाद यहां थोड़ा बदलाव हुआ है लेकिन कालोनी के करीब 100 बच्चों के लिए कोई स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और कोई नल एवम जल नहीं है। अब यहां लगभग 800 लोगों की आबादी है। केरल राज्य की मुस्लिम लीग राहत समिति और शाह-ए-आलम की नागरिक राहत सेवा ने शुरू में 30 परिवारों के साथ इसको निर्मित कराया था। मूलतः महाराष्ट्र के रहने वाले सय्यद दंगों के दौरान दो सप्ताह तक अपने परिवार से अलग हो गए थे। वे बताते हैं कि मेरे पांच बच्चे और पत्नी नरोदा पाटिया में हुए दंगों में बिछुड़ गए थे जो बाद में जीवित मिले।

बढ़ई का काम करने वाले सय्यद कहते हैं कि दिल का दौर पड़ने के बाद उसने काम बंद कर दिया है और अब उसके दो बेटों पर निर्भर है। बुधवार सुबह 11 बजे सभी लोग अहमदाबाद नगर निगम के पानी के टैंकर के आने का इंतजार कर रहे हैं। निवासियों का कहना है कि दोपहर से पहले कभी पानी नहीं आता है। पानी की यहां काफी कमी है क्योंकि टैंकर फिर अगले दिन ही आता है। वो बताते हैं कि इस क्षेत्र में कोई सरकारी स्कूल नहीं है और ज्यादातर लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजते है जहां 500 ​​रुपये प्रति माह फीस है।
एक गैर सरकारी संगठन ज्ञान शाला चलता है जिसमें नि: शुल्क कक्षाएं होती हैं। आसिफ शेख 12वी में है जिसकी बोर्ड की परीक्षाएं अगले महीने शुरू होंगी। वह काफी दूर स्कूल साइकिल से आता-जाता है, उसे अध्ययन भी करना होता है लेकिन दूसरा कोई विकल्प नहीं है। उनके पिता कोई काम नहीं करते हैं और उसके माता 4,500 रुपये प्रति महीने एक तंबाकू कारखाने में काम करटी है। उनके बड़े भाई जिन्होंने कक्षा 5 के बाद पढाई छोड़ दी थी, अभी दर्जी का काम करते हैं।
आसिफ गुजरात में हुए दंगों की कहानियों सुनकर बड़ा हुआ है, वह उस समय चार साल का था। आसिफ कहते हैं उनके चचेरे भाई और उसके 18 महीने के बेटे को 28 फरवरी को नरोदा पाटिया में जिंदा जला दिया था। आसिफ का कहना है कि पढाई के बाद कोई अच्छा काम मिला तो वह सिटीजन नगर को छोड़ देगा। वह इस नरक से अपने परिवार को बाहर निकलना चाहते हैं। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग मजदूर हैं या ऑटो रिक्शा चालकों के रूप में रोजी कमाते हैं। कॉलोनी की महिलाएं भी कढ़ाई आदि का काम कर लेती हैं।