बुर्के पर पाबंदी की मांग: क्या कहती हैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कीयां?

श्रीलंका में हुए आतंकी हमले के बाद वहां सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर बुरका पहनने पर पाबंदी लगा दी है। भारत में भी इस पर प्रतिक्रया हुई है। शिवसेना समेत कई हिंदूवादी संगठनों ने बुरका पहनने पर पाबंदी लगाने की मांग की है। बीस वर्षीय आफरीन फातिमा बीए तृतीय वर्ष कि छात्रा हैं। भारत की मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं. वे वहां वीमेन कॉलेज छात्र संघ की अध्यक्ष भी हैं। आफरीन बुरका नहीं पहनतीं।

बुरके पर बहस को वे बेकार का मुद्दा बताती हैं, “येह एक बिलकुल पर्सनल मामला है। जिसे पसंद है, वह पहने। जिसे नहीं, वह ना पहने. इसमें किसी तरह की रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता। सबको अपने पसंद के कपड़े पहनने की आजादी होनी चाहिए। अगर हम नहीं पहनते तो क्या हुआ?

आफरीन इस मुद्दे को बिलकुल अलग ढंग से देखती हैं। वह बताती हैं, “मुझे भी यह बताने और अहसास दिलाने की कई बार कोशिश की गई कि मैं मुसलमान हूं और मुझे बुरका पहनना चाहिए। लेकिन मुझे कभी नहीं लगा कि बुरका ना पहनने से मैं कहीं कम मुसलमान हूं।

आम तौर पर यह कारण दिया जाता है कि बुरका सीधे लड़कियों की हिफाजत से जुड़ा हुआ है। बुरका पहनने से वे सुरक्षित रहती हैं, छेड़छाड़ से बची रहती हैं, लड़को की गंदी नजरें उन पर नहीं पड़तीं। लेकिन आफरीन के अनुसार, “ऐसा बिलकुल नहीं हैं।

इस्लाम में साफ कहा गया है कि मर्दों को भी अपनी नजर नीचे रखनी चाहिए। अगर किसी की नजर में ही खोट है तो वह वही करेगा। कई बार तो बुरका पहनने वालों का भी रेप हो जाता है।

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, मुस्लिम महिलाएं दोनों तरह के विचार रखती हैं। अब वे घर से बाहर भी निकलती हैं, पढ़ने जाती हैं और ऑफिस भी। इनमें से कई बुरका नहीं पहनती हैं। लखनऊ निवासी सय्यदा खतीजा एक गृहणी हैं। वे अपने बच्चों के साथ अकेले रहती हैं क्योंकि उनके पति नौकरी की वजह से बाहर हैं।

वे खुद कार से बच्चों को स्कूल तक छोड़ती हैं और लेने भी जाती हैं। खतीजा बताती हैं, “कोई खास वजह नहीं हैं लेकिन मैं बिना बुरके के ज्यादा सहज महसूस करती हूं। अगर कोई पहनता है, तो उसका सम्मान है और यह उसका निजी मामला है। वैसे मुझे नहीं लगता कि मैं कुछ कम मुसलमान हो गई हूं।