बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा है मुस्लिम समाज, पॉलिसी मेकिंग का हिस्सा बनना उनके हक के लिए जरूरी

नई दिल्ली : इस वक़्त मुस्लिम समाज अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रहा रहा। इकनॉमिक, सोशल कल्चरल, हर मोर्चे पर बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं। हम ऐसे दौर में है जब मीडिया सच नहीं बता रहा, समाज को लड़वाने वाले अति सक्रिय हैं और सैकड़ों सालों के आपसी भाईचारे को तोड़ने की तमाम कोशिशें हो रही हैं। हम सब इसके पीछे के राजनीतिक मंशाओं को समझते हैं इसीलिए समाज के जिम्मेदार लोगों को हर परिस्थिति में एक दूसरे के हाथ पूरी मजबूती से थामे रहने पड़ेंगे।

राजनीति और सामाजिक डिस्कसन का ये सबसे स्याह और भयावह काल है..जहाँ रेप जैसे कुकृत्य पर भी धर्म/मजहब आधारित राजनीति होने लगी है। दर्द का अहसास तब ही होता है जब कोई अपना जाता है पर कुछ दर्द ऐसे होते हैं जो पूरे समाज को झकझोर देते हैं। क्या ऐसा समाज हम अपने और अपनी पीढ़ियों के लिए तैयार कर रहे हैं जिसमें रेप जैसे अमानवीय कृत्य को हिन्दू मुसलमान में बांट दिया जाए।

मुल्क की आजादी के 71 साल गुजर चुके हैं. इन 71 सालों में देश के मुसलमानों ने कई उतार-चढ़ाव भरे दौर देखे और कई चुनौतियों का सामना भी किया है. इसके बावजूद मुसलमानों के अन्दर एक बेहतर जिन्दगी की उम्मीद की लौ हमेशा जलती रही और उनकी आंखों में इसका ख्वाब सजता रहा है. आजादी के इतने अरसे बाद आज देश का मुसलमान कहां और किस हालत में खड़ा है.

आजादी के सत्तर साल में मुसलमानों के लिए सबसे गोल्डन पीरियड 1977 से 2009 तक था. इसी दौरान देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ी और विकास की दिशा में बेहतर कदम उठाए गए. देश का मुसलमान बाकी समाज के साथ खड़ा हुआ, 2009 के बाद फिर मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाया गया है. वर्तमान में मोदी की सरकार है, क्या अब 1947 के दौर वाला मुसलमान नहीं है? आज का मुसलमान देश के लिए मरने-कटने के लिए तैयार नहीं हैं?

मुस्लिम समाज के दो अहम मसले हैं एक कौम कि अंदरूनी मसलें और दूसरी बाहरी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मेम्बर डॉ कासिम रसूल इलयास ने बताया कि मुस्लिम समाज के पास काफी ऐसी शानदार चीजें हैं। इन्हें न सिर्फ खुद तराशने कि जरूरत है, बल्कि उन्हें हिंदुस्तान कि दूसरी क़ौमों के साथ बंटा जाना चाहिए। मिसाल के तौर पर इन्टरेस्ट फ्री बैंकिंग सिस्टेम में काफी पोटेन्शियल है। इसे सबके साथ शेयर किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि मुसलमान आज इसलिए भी पिछड़े रहे हैं क्योंकि वे पोलिटिकली बैकवर्ड हो गए है। उन्हें पॉलिसी मेकिंग का हिस्सा बनना होगा।