बीफ बैन हिंदू-मुस्लिम मुद्दा नहीं : जफर सरेशवाला

व्यावसायी जफर सरेशवाला की मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में नियुक्ति को मुस्लिम समूहों ने आलोचना की थी जिन्होंने दावा किया था कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन के कारण पद मिला है। उन्होंने मुसलमानों और मौजूदा सरकार के संबंध में कई मुद्दों पर बात की।

उनका कहना है कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय या अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय किसी संस्था के नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता। बात यह है कि विश्वविद्यालय के शैक्षणिक मानदंड हों। तीन तलाक़ पर उनका कहना था कि व्हाट्सएप और अन्य तरीकों से तलाक देना इस्लामिक नहीं है। कई लोग नहीं जानते कि निकाह के समय पति और पत्नी के बीच एक अनुबंध किया जाता है। वे व्हाट्सएप और अन्य अनुचित तरीकों के खिलाफ हैं।

मेरा हमेशा मानना ​​है कि हज यात्रा का खर्च मेरा धार्मिक दायित्व हैं, इसलिए मुझे सब्सिडी नहीं चाहिए। इसके बजाय मुस्लिम वर्चस्व वाले क्षेत्रों में स्कूलों का निर्माण और मुस्लिम बच्चियों को शिक्षा के लिए इस पैसे का इस्तेमाल किया जा सकता है। गौभक्तों पर उनका कहना था कि अपराधियों को सजा दी जानी चाहिए। यह दुखद है कि बीफ बैन हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनता जा रहा है।

गैर मुस्लिम के स्वामित्व वाले टैनरीज का बीफ छिपाने के लिए उपयोग किया जाता है। आज बीफ़ ज्यादातर गैर-मुसलमानों द्वारा खाया जाता है। इसलिए इसको हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनाना खतरनाक है। लोगों की भावना की रक्षा की जानी चाहिए।

मैं एक छात्र रहा हूं और अब कुलपति के पद पर हूं। हमें छात्र राजनीति की जरूरत है लेकिन यह शिक्षाविदों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए। कभी-कभी राजनीतिक दल युवाओं का इस्तेमाल कर उनका दुरुपयोग करते हैं जो गलत है। लोग सोचते हैं कि उर्दू एक धर्म विशेष की भाषा है लेकिन यह एक समृद्ध भारतीय भाषा है।