मुसलमानों की देशभक्ति पर शक करने वालों के लिए सबसे बेहतर जवाब ख्वाजा अमीर खुसरू

नई दिल्ली: ख्वाजा महबूब इलाही सैयद निजामुद्दीन ओलिया अलैहिर रहमा का जब इन्तेकाल हुआ वह उनके मुरीद ख्वाजा अमीर खुसरू दिल्ली में नहीं थे, इन्तेकाल के 6 महीने के बाद आब दिल्ली आए तो आदत के मुताबिक सबसे पहले मुर्शिद की दरबार में हाजिरी के लिए गए जब वहां पहुंचे तो बताया गया कि हजरत का इन्तेकाल हो चूका है।

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यह सुनकर ख्वाजा अमीर खुसरू मुर्शिद के मजार पर हाज़िर हुए और यह शेर पढ़ा, गोरी सोये सेज पर मुख पर डारो केस, चल खुसरू घर अपने साँझ भई चौ देस, यह शेर पढ़ते ही वहीं आपका भी इन्तेकाल हो गया। हर साल आप के उर्स के मौके पर पांच दिवसीय समारोह का आयोजन किया जाता है और आज आपके 714 उर्स के मुबारक मौके पर दरगाह में समारोह का सिलसिला जारी है।

उर्स का आगाज़ हो गया और आज मगरिब के बाद हजरत अमीर खुसरू- जीवन व कार्य’ के शीर्षक का आयोजन किया गया जिसमें मेजबानी करते हुए ख्वाजा सैयद मोहम्मद निजामी ने मेहमान का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि दुनिया में कितने ही लोग आए और चले गए नीज को याद करने वाला भी कोई नहीं है, मगर ख्वाजा अमीर खुसरू ने बादशाहों का दौर देखा लेकिन कोई बादशाहों की कब्र तक नहीं जानता।