सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इफ्तार पार्टी में शामिल होने पहुंचे तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने उनकी तस्वीर को ट्वीट करते हुए लिखा कि काश ऐसी ही तस्वीर नवरात्र में भी आती.
गिरिराज के इस ट्वीट के बाद अटकलों का बाजार गरम हो गया, लेकिन जब पटना के राजनीतिक गलियारे की गहमागहमी पर गौर करेंगे तो समझ पाएंगे कि दोनों दलों के बीच राजनीतिक चाल के तहत तनातनी दिखाने की कोशिश हो रही है.
नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में जाने का मतलब है कि उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि वह खुद को राज्य की राजनीति तक ही सीमित रखेंगे. ऐसे में उनके लिए यह मायने नहीं रखता है कि उनकी पार्टी केंद्र की सरकार में है या नहीं.
उनके लिए जरूरी है कि वह राज्य की सत्ता में मजबूत रहें. बिहार में अगले साल यानी 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके लिए नीतीश कुमार अभी से तैयारी में जुट गए हैं. बीजेपी से दूरी दिखाने की कोशिश भी उसी तैयारी का हिस्सा है.
साल 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू ने 141 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसमें 115 पर जीत मिली थी. वहीं बीजेपी ने 102 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसमें 91 सीटों पर जीत मिली थी.
243 सीटों वाले विधानसभा में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल महज 22 सीटों पर सिमट गई थी. रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा 3 और कांग्रेस 4 सीटों पर सिमट गई थी.
बीजेपी+जदयू की जोड़ी की इस प्रचंड जीत के पीछे बड़ी वजह यह थी कि इस चुनाव में मुस्लिमों ने भी नीतीश कुमार के चेहरे पर वोट दिया था.
इस दौर में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा थे. सेक्युलर छवि बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार उस दौर में नरेंद्र मोदी से खुद को दूर दिखाने की कोशिश करते रहे, जिसका फायदा पूरे एनडीए को हुआ था. इस चुनाव में बिहार में विपक्ष लगभग खत्म हो गया था.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार कुछ वैसी ही जीत दोहराने की कोशिश में अभी से जुट गए हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार (Bihar) की 40 में से 39 सीटें बीजेपी+जेडीयू+लोजपा गठबंधन को मिली है.
बिहार में मुस्लिमों की आबादी करीब 17 फीसदी है. यह आबादी 13 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के 17 में से 16 प्रत्याशियों की जीत का मतलब है कि मुस्लिमों ने जेडीयू को समर्थन दिया है.
साभार- ज़ी न्यूज़