बिहार के भगवाकरण की साजिश और नितीश की बेबसी

बिहार में महज़ दो सप्ताह में एक के बाद एक 9 जिला में साम्प्रदायिक झड़प और तनाव के मद्देनजर में लालू प्रसाद यादव का यह हमला एतिहासिक अहमियत रखता है, कि “नीतीश खत्म हो चुके हैं” । राज्य में उप चुनाव में भाजपा की हार के बाद साम्प्रदायिकता का जो नंगा नाच शुरू हुआ है और उससे निपटने में सरकार जिस तरह नाकाम हुई है, उसका सबसे बड़ा राजनीतिक नुकसान अगर किसी का होना है तो सुनिश्चित रूप से नितीश और उनकी पार्टी का होना है। जबकि फायदा भगवा पार्टी उठाएगी।

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यह पार्टी जिस तरह अन्य राज्यों में अपने सहयोगियों की सीटें चट कर गई है, वैसी ही कीमत जेडीयू को भी चुकानी पड़ेगी।बिहार में हिंसा की लहर की शुरुआत उस धार्मिक जुलूस से हुआ जिस का नेतृत्व केंद्र सरकार अश्विनी चौबे के बेटे और भाजपा नेता अरिजीत शाश्वत कर रहे थे। उनके खिलाफ एफआईआर होने बाद कोर्ट के गिरफ्तारी वारंट जारी होने बाद भी सरेंडर न करना। नितीश सरकार को चैलेंज करना है पर नितीश हैं कि उनकी जुबान तक नहीं खुल रही है।

2019 के आम चुनाव सर पर हैं और यह बात हर कोई पढ़ सकता है कि मोदी लहर की वह तीव्रता बाक़ी न रही। 4 साला भाजपा सरकार ने ऐसा इत्मिनान दिलाया कि भगवा पार्टी एक बार फिर सत्ता में आने लायक हो। इस बात को खुद भाजपा नेता भी गंभीरतापूर्वक महसूस कर रहे हैं कि आम चुनाव में भाजपा को अब सीधे बहुमत मिलने की आशंका नहीं है। यही वजह है कि भगवा नेताओं की बेइत्मिनानी और बेचैनी समय के साथ बढ़ती जा रही है। उन्हें यकीन है कि अब न गुजरात सभी 26 संसदीय सीटें भाजपा की झोली में डालेगा न यूपी 71 सीटें देगा। राजस्थान 27 सीटें देगा न मध्यप्रदेश से 25 सीटें मिल पाएंगी। ऐसे में अगर सहयोगी भी एक बाद एक साथ छोड़ रहे हों तो हालात अधिक चिंताजनक हो जाते हैं।