BJP की असम में नई जनसँख्या नीति लाने की योजना, मुसलमान निशाने पर

असम में भाजपा सरकार ने अगले साल की शुरुआत में अपनी खुद की जनसंख्या नीति को बहाल करने का फैसला किया है। अन्य बातों के अलावा, सरकार , जिन लोगो के दो से अधिक बच्चे होंगे उन्हें नौकरियां ना दिए जाने की योजना बना रही है।

हालांकि राज्य सरकार के अनुसार, यह निर्णय “असम के अद्वितीय, सामाजिक, आर्थिक, जातीय और भौगोलिक विविधता” को दिमाग में रखते हुए लिया गया है, परंतु वरिष्ठ समीक्षकों और राज्य में राजनीतिक विशेषज्ञों का यह कहना है की यह नीति मुख्य रूप से ‘चार’ इलाके में बंगाली बोलने वाले मुस्लिम प्रवासियों की बढ़ती आबादी को ध्यान में रख कर अपनाया जा रही है ।

प्रस्तावित नीति स्पष्ट रूप से पूरे असम के लोगो को लक्षित करने के लिए अपनायी जा रही है । अगर साफ़ तोर से कहा जाए तो राज्य सरकार असम में मुस्लिम समुदाय के बढ़ते परिवारों को देख कर चिंतित है । गौरतलब है की ज़्यादातर यह मुस्लिम अप्रवासियों की जनसंख्या ब्रह्मपुत्र के आस पास के इलाको और उसकी सहायक नदियों के आस पास केंद्रित है । जिन जिलों में इस समुदाय के लोग दशकों से बसे हुए हैं वह ज़िले हैं – बारपेटा, धुबरी, गोलपाड़ा, दरांग, बोंगईगांव, हैलाकांडी, और नगांव । “वरिष्ठ पत्रकार वासबीर हुसैन ने गुवाहाटी-आधारित दैनिक “सेनिटेल” में अपने लेख में लिखा ।

2011 की जनगणना के अनुसार, असम में मुस्लिम समुदाय की आबादी में सबसे अधिक वृद्धि हुई है , यह 2001 की ३०.९ % से बढ़ कर २०११ मे ३४.२ % हो गयी थी । नौ जिलों मे बहुमत संख्या मुसलमानो की घोषित की गयी है, जिसमें से तीन – दरांग, बोंगईगांव और मोरीगांव – २००१ की जनगणना के शामिल नहीं थे।

गौरतलब है की 2011 की जनगणना के हिसाब से असम, जम्मू और कश्मीर(६८,३%) के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला राज्य है|