आजादी दिवस के दिन भी बीजेपी आजादी के मतलब को समझ नहीं पाई। इसका उद्धारहण उनके अपने ही दलित नेता के साथ हुए बर्ताव से पता चलता है।
दरअसल भिवानी में 15 अगस्त पर कार्यक्रम के दौरान दलित विधायक के साथ भेदभाव का मामला सामने आया। बवानीखेड़ा से विधायक विशम्भर सिंह बाल्मीकि को इस कार्यक्रम के दौरान बैठने के लिए कुर्सी ही नहीं दी गई।
बीजेपी की इस हरकत से विशम्भर सिंह इतने नाराज हुए कि वे तुरंत कार्यक्रम छोड़कर वापस जाने लगे। उन्हें वहां से वापिस जाता देखकर वहां मौजूद अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गये।
उन्होंने गुस्साए विधायक को मनाने की बड़ी कोशिशें की और तुरंत ही उनके लिए कुर्सी का इंतजाम किया।
लेकिन विशम्भर सिंह बाल्मीकि इतने नाराज थे कि उन्होंने अधिकारियों से कहा, मैं आज भी गुलाम हूं।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि ये प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी थी कि वो हमलोगों के बैठने के लिए सही जगह और कुर्सियों का इंतज़ाम करते।
इस गड़बड़ी के लिए प्रशासन जिम्मेदार है। स्थानीय प्रशासन के रवैये से नाराज विधायक ने कहा कि ये अत्याचार की नीति है और इसे चलने नहीं दिया जाएगा।
हालांकि कुछ देर की नाराजगी के बाद विधायक मंच पर आने के लिए तैयार हो गये, इस बार उन्हें एक दूसरे विधायक के बगल में बैठने के लिए कुर्सी दी गई।
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