भगवाइयों का बढ़ता जुनून क्या गुल खिलाएगा?

नई दिल्ली: सिकंदर ने पंजाब के साथ दुनिया के एक बड़े हिस्से को जीत लिया था लेकिन उनके अंदर भी इतना अहंकार, इतनी मदहोशी नहीं छाई थी, जितना इस समय भाजपा के उच्च अधिकारी से लेकर मामूली स्वयंसेवक में छाई हुई है। सांप्रदायिक ताकतें सिर उभारने लगी, राष्ट्रीय एकता और गंगा जमुनी तहज़ीब की धज्जियां उड़ाने लगे हैं, दूसरे शब्दों में स्पष्ट रूप से यूं कह लें कि मुसलमानों के खिलाफ रणभूमि की तैयारी करने लगे, जिसके एक ओर भगवा रंग में रंगे सरकार से लेकर मामूली क्लर्क बल्कि मीडिया तक है और दूसरी ओर मुसलमान जिसके पास न सरकार और न ही शक्ति।

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उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के एक गाँव में मुस्लिम विरोधी जो पोस्टर लगाए गए थे इन पोस्टरों में बतौर संरक्षक भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम दर्ज है। संभव है कि इस पोस्टर के बारे में योगी को ज्ञान न हो, लेकिन यह भी सच है कि इन पोस्टरों को चिपकाने वालों के आदर्श योगी आदित्यनाथ ही है, जिसने हमेशा और हर जगह मुसलमानों के खिलाफ जहर अगला है, निन्दा की है और भयभीत करने की कोशिश की है।

बरेली के एसपी का कहना है कि हम लोग गांव के इन युवकों से पूछताछ कर रहे हैं जो प्रिंटिंग और फोटो एस्टेट में काम करते हैं ताकि अपराधियों को तलाश कर के सख्त से सख्त सजा दी जाए, मगर बात फिर वही होगी, भाजपा की सरकार आ गई है, भैंस भी उसी की डंडा भी उसी का।

नजीब दिल्ली के विश्वसनीय विश्वविद्यालय से 100 दिन पहले गायब हुआ, पुलिस आज तक पता नहीं लगा सकी क्योंकि इसे ‘स्वर्ग में बेहतर हूरों के पास भेजने वाले’ सभी आरएसएस और भाजपा के परवरिश याफ्ता औलाद हैं।

उधर मध्य प्रदेश में ट्रेन में विस्फोट के कुछ घंटे बाद ही पता चल जाता है कि इस का मासटर माइंड सैफुल्लाह लखनऊ में है, फिर बहादुर एटीएस ने फ़ौरन मार गिराया और उनके साथियों की गिरफ्तारी का सिलसिला अब तक जारी है। आश्चर्य है कि एक सैफुल्लाह जीवित पकड़ में नहीं आया मगर आईएसआई के ग्यारह हिंदू एजेंट आसानी से पकड़ लिए गए!

भाजपा के आगमन का प्रभाव लखीमपुर शहर से सटे गांव दियोरह पुर में भी देखने को मिला। होली के हुड़दंग में सांप्रदायिक ताकतों ने न केवल मुसलमानों के घरों में तोड़ फोड़ की बल्कि अपमानजनक नारे भी लगाए, मस्जिद में लगा परचम को फाड़ डाला लाउडस्पीकर भी निकाल कर ले गए।

उधर सिकंदराबाद के जहांगीर आबाद गांव में बदमाशों द्वारा जबरन मस्जिद में दाखिल होकर भाजपा का झंडा लगाने की कोशिश की गई, मुसलमानों को गालियां दी गईं। इन सांप्रदायिक ताकतों के हौसले इसलिए बुलंद हुए हैं कि उन्हें इसी अच्छे दिन का इंतजार था।

देवबंद एक ऐसा उज्जवल नाम है जिसे पूरी दुनिया इसलिए जानती है कि वहाँ एक वैश्विक इस्लामी संस्था ‘दारुल उलूम’ है जिससे देवबंद को वेश्विक प्रसिद्धि मिली, लेकिन इस विधानसभा सीट से जैसे ही भाजपा के उम्मीदवार ब्रजेश सिंह ने जीत दर्ज की उसने देवबंद का नाम देववृंद करने की मांग शुरू कर दी, बल्कि उसने कहा है कि विधानसभा सत्र के पहले सत्र में ही हम इसे पारित कराने की कोशिश करेंगे।

जबकि वास्तविकता यह है कि इतिहास में कहीं भी देववृंद लिखा ही नहीं है, हाँ मुगल साम्राज्य से पहले देवी देवताओं और देवी सुंदरी के लिए ‘ देवी बंद’ कहा जाता था, लेकिन कई सौ साल पहले से देवबंद ही कहा जाता रहा है। तथा ‘दारुलउलूम’ ने इस कस्बे को ऊँचा मुकाम और सुन्दरता प्रदान की, और मुसलमानों के केंद्र से प्रसिद्ध हुआ।

हालांकि ब्रजेश सिंह ने खुद चुनाव के समय अपने पोस्टरों में देवबंद ही लिखा था, लेकिन भाजपा और खुद उसकी जीत से मदहोश आरएसएस कार्यकर्ताओं और भाजपा के नेताओं ने उनके स्वागत होर्डिंग्स में देववृंद लिख कर अपनी योजना के पूरा होने की ओर कदम बढ़ाने की गंदी कोशिश की है।

21 साल पहले भी भाजपा ने यहां जीत दर्ज कराई थी लेकिन उस बार यह पार्टी बेहद कमजोर थी, जिसकी वजह से उस समय या पहले इस तरह की मांग करने की कोई हिम्मत नहीं कर सका था, लेकिन अब तो हर तरफ भगवा झंडे लहरा रहे हैं इसलिए देवबंद, बरेली और लखीमपुर ही नहीं बल्कि अब हर जगह भेदभाव, हिंसा और शांति के दुश्मन देश विरोधी काम करेंगे, लोकतंत्र को ठेंगा दिखाएंगे, और केवल मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक, मानसिक और सामाजिक युद्ध छीड़ेंगे, धार्मिक उत्तेजना करेंगे।

इसके लिए जरूरी है कि मुसलमान अब भावनाओं में न आएं, रणनीति से काम करें। चढ़ते सूरज को अस्थायी तौर पर लोग जरूर सलाम करते हैं लेकिन इसका सूर्यास्त होना भी तय होता है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

साभार-बसीरत ऑन लाइन