ब्लॉग: सऊदी अरब का परमाणु तकनीक, अरब देशों के लिए जरूरी!

इक़बाल रज़ा, कोलकाता। पिछले दिनों अमेरिका द्वारा सऊदी अरब को परमाणु तकनीक देना दुनिया भर में सुर्ख़ियों में रहा। पिछले दशकों में सऊदी अरब इसके लिए लगातारप्रयासरत रहा है। यह सऊदी अरब के भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए दूसरे साधनो की ओर जाना या अमेरिका द्वारा प्रदत्त सुरक्षा गारंटी पर निर्भरता की चिंता या इस क्षेत्र में शक्ति असंतुलन जैसे कारण हो सकते हैं।

मेरे हिसाब से मध्य-पूर्व में व्याप्त अशांति का मुख्य कारण शक्ति-असंतुलन है। मध्य-पूर्व में इजरायल तथा ईरान के क्षेत्रीय सैन्य बढ़त को मद्देनज़र रखतेहुए परमाणु तकनीक के लिए सऊदी अरब की कोशिश क़ाबिले तारीफ है।

मध्य-पूर्व में सऊदी अरब की भूमिका बहुत अहम होने जा रही है, जो इस क्षेत्र के देशोंतथा उनकी ज़मीन कब्जे की रणनीति रखने वाले देशों के खिलाफ अधिक मजबूती से खड़ा हो पाएगा।

इस क्षेत्र की एकमात्र परमाणु शक्ति के रूप में इजरायल का होना जोखिम भरा है। इस क्षेत्र की शक्ति-संतुलन के लिए भी परमाणु क्षमता हासिल करनासऊदी अरब के लिए आवश्यक हो गया था।

हालांकि इज़राइल आधिकारिक रूप से परमाणु-क्षमता होने की बात स्वीकार नहीं करता है, लेकिन ऐसा माना जाता हैकि इसने ऐसी क्षमता हासिल कर ली है, साथ ही ऐसी भी ख़बरें आती रहती है कि ईरान भी परमाणु हथियार हासिल करने के करीब पहुंच गया है।

इसमें संभावितजोखिम के बजाय वास्तविक जोखिम अधिक है। जैसा कि इजरायल एक आक्रामक राष्ट्र है, इससे इजरायल तथा ऐसे देशों पर लगाम लगेगा। इस क्षेत्र में ऐसी क्षमता का होना दुनिया के लिए, मध्य पूर्व केलिए और इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए काफी खतरनाक है। इजरायल अरब देशों से डरता नहीं है, यह एकमात्र ऐसा शक्तिशाली राष्ट्र है जिसे कोई भी अरबदेश वास्तव में चुनौती देने की स्तिथि में नहीं है।

यहाँ मैं इस क्षेत्र के लिए क्या बेहतर है, के बारे में कुछ विश्लेषण की व्याख्या की कोशिश कर रहा हूँ जो इससे भिन्न भी हो सकता है। यह सिर्फ एकविश्लेषण है। यदि क्षेत्र में संतुलन हो तो क्या हो सकता है। परमाणु हथियार का समर्थन कभी नहीं किया जा सकता है। मानवता की भाषा अधिकारों, समानताऔर मूल्यों की बात करती है।

लेखक: इक़बाल रज़ा, कोलकाता