बजट में मुसलमानों का ज़िक्र तक न करना देश के विकास के लिए खतरनाक: मुस्लिम बुद्धिजीवी

नई दिल्ली: वित्तीय मंत्री अरुण जेटली के जरिए कल संसद में पेश हुए बजट को सरकार और उसकी सहयोगी पार्टियाँ हर वर्ग को राहत देने वाला बता रही हैं। वहीं विपक्षी पार्टियाँ उक्त बजट को सिर्फ हवाई बजट बता रही हैं, जबकि मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने केंद्रीय सरकार के बजट को ‘सबका साथ सबका विकास’ के बजाय इन्वेस्टरों और कुछ खास विभाग को फायदा पहुँचाने वाला बताया है।

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उन बुद्धिजीवियों का कहना है कि मोदी सरकार ने इस बजट में अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों को सीधे तौर पर नज़रंदाज़ कर दिया और मुसलमानों का ज़िक्र तक नहीं किया गया। जो देश की निर्माण व विकास के लिए खतरनाक है।सांसद मौलाना असरारुल हक कासमी ने मोदी सरकार के बजट पर तंज़ कसते हुए कहा कि अरूण जेटली के जरिए पेश किये गये इस बजट को शायरी से बताया। कहा ‘बहुत शोर सुनते थे पहलु में दिल का- जो चीरा तो एक कतरा खू न निकला’।

उन्होंने कहा कि बजट में मुसलमानों का ज़िक्र तक नहीं किया गया और यह बहुत अफसोसनाक क़दम है कि संबंधित मंत्री ने संसद में बजट पेश करने के बीच मुसलमानों का नाम लेना गवारा नहीं समझा। इस्लामिक स्कॉलर प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने मोदी सरकार के बजट पर प्रतिक्रिया का इज़हार करते हुए कहा कि किसी समृद्ध समाज में एक अच्छी सरकार उस समय समझी जाती है, जब वह अल्पसंख्यकों और महिलाओं के साथ सकरात्मक रुख इख़्तियार करती है।