बनारस में हार का डर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को परेशान कर रहा है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री का कैबिनेट बनारस में गली-गली घूमता नज़र आ रहा है। एक से एक केंद्रीय मंत्री, पार्टी के बड़े नेता, प्रबंधक और जातीय गणित के हिसाब से अनुकूल चेहरे, सबको लाइन बनाकर बनारस में उतार दिया गया है।
जहां स्मृति ईरानी महिलाओं को साधने में लगी हैं वहीं रविशंकर प्रसाद, धर्मेद्र प्रधान तो छोड़िए, मोदी अपनी पूरी त्रिमूर्ति (मोदी, शाह और जेटली) के साथ मैदान में उतर आए हैं। प्रधानमंत्री रोड शो करेंगे, अमित शाह और योगी भी रोड शो में उतरेंगे, रैलियां करेंगे।
ऐसा नज़ारा है कि जैसे भाजपा वाराणसी में कोई युद्ध लड़ने जा रही है। उसे हार और गढ़ बचाने की चिंता है। अगर ऐसा नहीं होता तो प्रधानमंत्री सहित कैबिनेट के तमाम नेताओं को बनारस में दर-दर दस्तक देने की क्या ज़रूरत थी। यूपी चुनाव के पांच चरणों का चुनाव खत्म हो चुका है। छठें चरण का मतदान 4 मार्च को पूर्वांचल के सात जिलों के 49 सीटों पर है।
प्रधानमंत्री अपनी जनसभाओं में बार-बार दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को भारी बहुमत से जीत हासिल होने वाली है। उत्तर प्रदेश में अपनी जीत को लेकर भाजपा आश्वस्त है तो जाहिर है अब न प्रचार की ज़रूरत है और न ही गलियों, रैलियों में वक्त बरबाद करने की। नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की सीटों पर जो स्थिति बनी हुई है उसने पार्टी और प्रधानमंत्री दोनों की नींद उड़ा रखी है।
यह चिंता का विषय है कि जब बजट से लेकर नीतियों तक दिल्ली में बहुत कुछ संभालने और तय करने को बाकी है तो फिर पूरी सरकार को वाराणसी में क्यों झोंका जा रहा है। यह कितना उचित है। पहले के प्रधानमंत्रियों ने भी क्या ऐसा किया है और अगर किया भी है तो एक जमे-जमाए प्रधानमंत्री को इस तरह देश की सरकार को क्षेत्र की लड़ाई में झोंक देना क्या नैतिक और उचित है।