UP के बाद अब झारखंड में 164 बच्चों की मौत, मचा हड़कंप

इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम गठित की है। टीम के सदस्यों ने शुक्रवार को अस्पताल पहुंच कर मामले की जांच की। जांच में अस्पताल में बच्चों की मौत से संबंधित आंकड़े ठीक नहीं है। बीएचटी में बच्चों की उम्र कुछ और डाटा इंट्री में कुछ और दर्ज है। इससे आंकड़ा निकालने में परेशानी हुई।
टीम ने जांच में पाया कि अस्पताल में हर माह बच्चों के भरती होने की संख्या बढ़ रही है। उसी अनुपात में मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। एनआइसीयू में शून्य से 28 दिन के बच्चों को रखा जाता है। सबसे अधिक मौत एनआइसीयू में ही हुई है।
इस अस्पताल में बंगाल, ओड़िशा सहित पूरे कोल्हान के लोग अपने बीमार बच्चे का इलाज कराने आते हैं। टीम ने पाया कि पहले यहां पीआइसीयू व एनआइसीयू नहीं रहने के कारण गंभीर बच्चों को दूसरे अस्पतालों में भेज दिया जाता था। लेकिन अब वैसे बच्चों का भी यहां इलाज किया जाता है. इससे भी बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ा है।
चार माह में 112 बच्चे की मौत
अस्पताल में मई से अगस्त के दौरान एनआइसीयू, पीआइसीयू व वार्ड में विभिन्न रोगों से ग्रस्त 1867 बच्चों को भर्ती किया गया था। इनमें 164 बच्चे की मौत हो गयी।
एनआइसीयू में सबसे अधिक 112 बच्चों की मौत ( कुल 343 बच्चे भरती थे) हुई। अगस्त में इन तीनों जगहों पर कुल 470 बच्चों को भरती कराया गया था, जिनमें 41 बच्चों की मौत हो चुकी है। पीआइसीयू में 110 बच्चों में 31 और वार्ड में 1410 में 21 बच्चों की मौत हो गयी।
जांच दल में शामिल निदेशक मेडिकल एजुकेशन डॉ एएन मिश्र ने कहा, अब तक की जांच से पता चला है कि बच्चों की मौत कुपोषण से ही हुई है। गर्भवती मां अस्पताल में जाकर एएनसी नहीं कराती, जिस कारण उन्हें सही खुराक नहीं मिल पाती। टेटेनस की सुई नहीं मिल पाती। जन्म के बाद भी नवजात को जो टीका मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता। नतीजतन बच्चों की स्थिति जब बिगड़ जाती है, तब अस्पताल लेकर आते हैं।
निदेशक प्रमुख डॉ  सुमंत मिश्रा ने कहा की बच्चों की मौत के कारणों का पता लगाया जा रहा है। जांच टीम ने  रिपोर्ट तैयार कर ली है। इसकी जांच की जायेगी। जो भी दोषी पाया जायेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी।