अगर आपसे कहें कि भारत में एक ऐसी जगह है जहां खुद मां-बाप अपने बेटी से जिस्मफरोशी का धंधा करवाते हैं और खुद ही ग्राहक भी ढूंढ कर लाते हैं तो आप यकीन नहीं करेंगे। लेकिन बता दें कि ये सच है। इस जगह बेटी पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है। इस जश्न के पीछे का कारण भी उतना ही भयावह है।
हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के मालवा इलाके के रतलाम, मंदसौर और नीमच जिलों में निवास करने वाले बांछड़ा समुदाय की जहां लड़की होने पर जश्न इसलिए मनाया जाता है ताकि बड़ा होने पर उन्हें देह व्यापार के दलदल में धकेला जा सके।
अब जो ताजा मामला सामने आया है उसके मुताबिक बांछड़ा समुदाय के लोग दूसरे समुदायों से लड़कियों को खरीद कर उन्हें देह व्यापार में धकेल रहे हैं। पेशे से वकील एक आरटीआई एक्टिविस्ट अमित शर्मा ने इस बात पर चिंता जाहिर की है और कहा है कि इस तरह इस गंदे धंधे में शामिल महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। विस्तार से जानिए पूरा मामला
बांछड़ा समुदाय में देहव्यापार को सामाजिक मान्यता है और इसलिये इनके परिवार में लड़की का होना बड़ा अहमियत रखता है। बांछड़ा समुदाय में प्रथा के अनुसार घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को जिस्मफरोशी करनी ही पड़ती है। मालवा में करीब 70 गांवों में जिस्मफरोशी की करीब 250 मंडियां हैं, जहां खुलेआम परिवार के सदस्य ही बेटी के जिस्म का सौदा करते है।
इस समुदाय में बेटी के जिस्म के लिए मां-बाप ग्राहक का इंतज़ार करते है। कोई उनकी बेटी के साथ हम बिस्तर होने के लिए राजी हो जाता है तो उन्हें ख़ुशी होती है की चलो ग्राहक तो आया।
सौदा होने के बाद बेटियां अपने परिजनों सामने ही हमबिस्तर हो जाती हैं। आश्चर्य की बात यह है कि परिवार में सामूहिक रूप से ग्राहक का इंतज़ार होता है, जिसको ग्राहक पहले मिलता है उसकी कीमत परिवार में सबसे ज्यादा होती है।
इस समुदाय में यदि कोई लड़का शादी करना चाहे तो उसे दहेज़ में 15 लाख रुपए देना अनिवार्य है। इस वजह से बांछड़ा समुदाय के अधिकांश लड़के कुंवारे ही रह जाते हैं।
यहां पर ये धंधा या कहें कि गंदगी इतनी फैल चुकी है कि बाछड़ा समाज देह मंडी के रूप में कुख्यात है, जो वेश्यावृत्ति के दूसरे ठिकानों की तुलना में इस मायने में अनूठे हैं, कि यहां सदियों से लोग अपनी ही बेटियों को इस काम में लगाए हुए हैं। इनके लिए ज्यादा बेटियों का मतलब है, ज्यादा ग्राहक!
साभार- वन इंडिया हिन्दी