अदालत बनाम चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया

इस मामूली बात पर गैर मामूली जोश व खरोश कहिये या कुछ और यह सच्चाई अपनी जगह पर है कि कोर्ट बेनक़ाब हो चुकी है। जिस निष्पक्षता के लिए उसे सब जानते रहे हैं। वह लड़खड़ा गई है। पहली बार जजों को जनता का सामना करना पड़ रहा है।

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यह वह बेहतरीन हैडलाइन है जो मैंने एक उर्दू दैनिक में देखी।उसमें पूरी कहानी बयाना कर दी लेकिन फिर भी कई बातें कहे बगैर छोड़ दी गईं। सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस सम्मेलन कर के इतिहास रच दिया। सम्मेलन में इस बारे में उन्होंने बयान किया कि चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया क्या करते रहे हैं। उन का मानना यह है कि मिश्रा बराबर के लोगों में पहले हैं। न उससे ज़्यादा न उससे कम, लेकिन उसका आरोप है कि चीफ जस्टिस ने खुद को सबसे आला बना रखा है।

चार जजों के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पर खुलेआम हर्फ़ उठाकर लोगों को हैरत में डाल दिया है। लेकिन सरकार ने दखलंदाजी न कर के और कोर्ट पर इस मामले का समाधान छोड़कर ठीक किया। इस पर पूर्व चीफ जस्टिसों ने चार जजों की इस सम्मेलन पर अफ़सोस किया है।

अपने प्रतिक्रिया में पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने यह सवाल उठाया है कि ऐसा खोलता हुआ मुद्दा महीने तक दबा क्यों रहा। आज के घटना से मैं बहुत परेशान और फिक्रमंद हूँ। जो कुछ आज हुआ वह ऐसे शख्स के लिए बहुत अफसोसनाक और तकलीफ़देह है। सुप्रीमकोर्ट जैसे संस्था का अध्यक्ष रहा हो, पत्र को सामने लाये जाने से संबंधित अपने प्रतिक्रिया में पूर्व चीफ जस्टिस का यह कहना ठीक है कि चीफ जस्टिस को इस मामले पर जजों से बात करके मुद्दे को सुलझाना चाहिए था।