24 साल से जेल में बंद अशफाक की पैरोल पर रिहाई याचिका पर अदालत का सकारात्मक रवैया

मुंबई। पिछले 24 सालों से जेल की मुसीबत झेलने वाले एक व्यक्ति की पैरोल पर रिहाई के लिए दाखिल याचिका पर आज अंतिम सुनवाई प्रक्रिया में आई। इस दौरान दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि आरोपी को पैरोल पर रिहाई मिलनी चाहिए। इस संबंध में जेल प्रशासन को आदेश दिया कि वह नए सिरे से तीन सप्ताह के भीतर याचिका कर्ता के याचिका पर कार्रवाई करे।

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आरोपी को कानूनी सहायता प्रदान करने वाली संस्था जमीयत उलेमा महाराष्ट्र (अरशद मदनी) कानूनी सहायता समिति के प्रमुख गुलजार आजमी ने मुंबई में पत्रकारों को बताया कि पिछले चौबीस सालों से जेल की सलाखों के पीछे कैद उम्रकैद की सजा काट रहे अशफाक अब्दुल अजीज की पैरोल पर रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी जिस पर आज सुनवाई प्रक्रिया में आई।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ एडवोकेट रत्ना कर दास ने दो सदस्यीय बेंच जस्टिस एके सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण को बताया था कि पिछले दिनों इस मामले में फैसला जारी करते वक़्त जेल प्रशासन की एक भ्रामक रिपोर्ट जिसमें वह 24 सालों से जेल में क़ैद होने के बजाय बारह साल से जेल में कैद होने की रिपोर्ट दी थी जिसके आधार पर अदालत ने आरोपी को छह माह के बाद पैरोल आवेदन देने का आदेश दिया। एडवोकेट रत्ना कर दास ने अदालत को बताया कि जेल प्रशासन की घटिया रिपोर्ट का खामियाजा याचिकाकर्ता को भुगतना पड़ रहा है।

वहीँ वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा तर्क की सुनवाई के बाद, दो सदस्यीय पीठ ने अपनी गलती को स्वीकार करते हुए अपने तीन लाइन के आदेश में कहा कि पैरोल पर रिहाई के लिए याचिका कर्ता के मांग पर प्रशासन तीन सप्ताह के भीतर निर्णय लें।

वहीँ गुलजार आज़मी ने कहा कि आज की न्यायिक कार्रवाई की रोशनी में, जयपुर जेल प्रशासन को अगले कुछ दिनों में उल्लेख भेजा जाएगा ताकि आरोपी को पैरोल पर रिहा करवाने का अनुरोध किया जा सके।

गौरतलब है कि भारतीय जेल कानून 1894 के अनुसार कैदियों को साल में 30 से लेकर 90 दिनों तक पैरोल पर रिहा किया जा सकता है जो जेल में दंड काट रहे हैं और वे बीमारी झेल रहे हों या उनके परिवार में कोई गंभीर रूप से बीमार हो, शादी ब्याह में भागीदारी के लिये, मातृत्व अवसर पर, दुर्घटना में अगर किसी परिवार सदस्य की मौत हो तो जेल में कैद व्यक्ति अस्थायी जेल से रिहाई दी जाती है।