अब भगवा पार्टी मोदी को मौत की धमकी वाले कार्ड का इस्तेमाल कर रही है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में चाय के स्टॉल से दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र भारत के प्रधानमंत्री बनने तक का सफर काफी अच्छा रहा है। भाजपा नेता अब आने वाले 2019 के आम चुनावों के लिए तैयार हैं।

आठ वर्ष की कम उम्र में मोदी आरएसएस के साथ जुड़े जो एक बहुत शक्तिशाली हिंदुत्व संगठन है और 1920 के दशक के शुरू में वह अस्तित्व में आया। अब वह हर दिन भारतीय राजनीति में मजबूत हो रहा है।
 
हिंदुत्व की विचारधारा से संगठन को बढ़ावा देने के साथ उनका सहयोग था जिसने मोदी को लालकृष्ण आडवाणी के साथ अपनी पार्टी के चेहरे बनने के लिए चुनौती दी। कड़ी मेहनत से मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने लेकिन मुख्यमंत्री पद पर रहने के कुछ महीनों के भीतर राज्य को मुस्लिम विरोधी दंगे हुए जहां 1000 से ज्यादा मुस्लिमों की हत्या कर दी गई थी।
 
पूरा देश मुस्लिम हत्याओं में चुप रहा, बहुत कम लोगों ने इन मौतों पर सवाल उठाने की हिम्मत की। राज्य के मुख्यमंत्री ने दंगों को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की थी। साल 2004 में इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ का मामला आया जहां 19 वर्षीय छात्रा को पार्टी द्वारा आतंकवादी के रूप में गलत तरीके से फंसाया गया था और उसको फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार दिया गया। हालांकि, एनआईए ने इशरत को आतंकवादी होने के दावों को खारिज कर दिया।

विपक्षी दल भी इन सब पर चुप्पी साधे रहे जबकि उनको राज्य के मुख्यमंत्री से गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगों पर बात करनी चाहिए थी। गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के समय मोदी को कभी भी मौत की धमकी नहीं मिली। विवादों में रहे मोदी को एक लंबे समय तक अमेरिका ने वीजा नहीं दिया था।

भगवा पार्टी पर आये संकट के दौरान पार्टी के नेताओं ने उनकी ‘मौत को खतरे वाला कार्ड’ इस्तेमाल किया था। कई प्रमुख समाचार माध्यमों में इसके बारे में खुले तौर पर बात की है। पार्टी वोट हासिल करने के लिए सहानुभूति बटोरना चाह रही है। वास्तव में यह कार्ड आगामी लोकसभा चुनाव के लिए खेला जा रहा है।