“दारुल क़ज़ा’ को फैमिली कोर्ट जैसे अधिकार देने की ज़रूरत”

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में कोर्ट सिस्टम को अधिक तेज़ बेहतर करने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि पुरे राज्य में अदालतों और जजों की कमी की वजह से इंसाफ पाने में अवाम को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है और काफी लंबा इंतज़ार भी करना पड़ता है। उन्होंने इस मौके पर ज्यादा से ज्यादा फैमिली कोर्ट स्थापित करने का ऐलान किया है।

Facebook पे हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करिये

सरकार चाहती है कि चाहे सिविल कोर्ट हो या फैमिली कोर्ट, उन में से कुछ संख्या फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट की भी होगी। सरकार के इस ऐलान का हम स्वागत करते हैं, इस शर्त के साथ कि वह जितने भी फैमिली कोर्ट स्थापित करें, उन में सभी धर्मों के जानकारों का भी एक पैनल बनाएं, ताकि अवाम को उनके पर्सनल ला के आधार पर फैसला दिया जा सके।

यह तो सच है कि इंसाफ में देरी यह सिर्फ उत्तर प्रदेश की समस्या नहीं है बल्कि पूरा देश इस समस्या से जूझ रहा है। इसी देश में छोटे छोटे मुकदमे का सामना करते हुए आरोपियों की कई कई दशक जेलों में ही गुजर गईं। सैंकड़ों आरोपी तो बेगुनाही साबित होने में देरी की वजह से जेल में ही मर गये।

सरकार उत्तर प्रदेश में फैमिली कोर्ट को स्थापित करने में गंभीर है तो उन्हें दुसरे बसने वाले धर्मों से संबंध रखने वाले लोगों का भी ख्याल रखना चाहिए। मुस्लिम पर्सनल ला की सुरक्षा के समर्थक लोग और शरियत की साया में जिंदगी बसर करने वाले आम मुस्लमानों की राय है कि वह अपने तमाम घरेलू समस्याएं देश के कई हिस्सों में स्थापित दारुल कज़ा से हल कराएँ।

इसी संदर्भ में लेखक उत्तर प्रदेश सरकार से अपील करता है कि वह फैमिली कोर्ट के ज्यादा से ज्यादा स्थापना के साथ साथ राज्य के अंदर स्थापित दारुल कज़ा या शरई अदालतों को भी फैमिली कोर्ट जैसे इख़्तियार दें, क्योंकि जिस तरह फैमिली कोर्ट अनद्रोनी विवाद को कराते हैं उसी तरह फैमिली कोर्ट अन्द्रोनी विवादों को हल कराते हैं।

प्रोफ़ेसर: अख्तरुल वासे