‘दिल्ली को कभी ‘उर्दू’ कहते थे, इस भाषा में मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं’

‘उर्दू संयुक्त भारतीय सभ्यता की वाहक है’, ‘उर्दू की मिठास लोगों को आशिक बना देती है’, ‘दुख दर्द को बेहतर तरीके से पेश करने का ज़रिया है उर्दू भाषा’ और सबसे बड़ी बात यह कि दिल्ली को कभी उर्दू कहते थे।

यह बातें शुक्रवार शाम दिल्ली में आयोजित ‘जश्ने बहार’ मुशायरे में कही गईं।

Facebook पे हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करिये

खबरों के मुताबिक़, उर्दू के मशहूर लेखक शम्शुर्रहमान फ़ारूक़ी की अध्यक्षता में हुए इस मुशायरे में भारत के अलावा अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अमीरात और जापान के भी शायर शामिल हुए। हालाँकि पहली बार पाकिस्तान के किसी शायर ने इस मुशायरे में हिस्सा नहीं लिया।

शमशुर्रहमान फारूकी ने कहा कि ‘मुशायरा एक ऐसी परंपरा है जो दुनिया में केवल उर्दू में ही पाई जाती है, न तो इस तरह की परंपरा अरबी में है और न ही किसी और भाषा में। उन्होंने कहा कि मुशायरे में इन दिनों जो आना जाना लगा होता है पहले वैसा नहीं था। पहले जो जिस पहलू बैठ गया बस बैठ गया। जिसे जहां जगह मिली वहीं बैठ गया।

मुशायरे में बॉलीवुड की जानी-मानी शख्सियत जावेद अख्तर भी मौजूद थें। उन्होंने भी अपने ताजा कलाम लोगों के सामने पेश किया जिसमें मौजूदा हालात पर टिप्पणी थी।

जश्ने बाहर ट्रस्ट की आत्मा कामना प्रसाद ने कहा कि ‘उर्दू भाषा ने हमेशा अन्याय के खिलाफ झंडा बुलंद किया है। यह गंगा और यमुना के दो किनारों को जोड़ने वाली भाषा है। ‘

लेकिन इसके साथ उन्होंने अफ़सोस का इज़हार किया कि आज शायरी में नफरत की बात हो रही है और हम इस मानसिकता का पुरजोर विरोध करते हैं।

फिल्म अभिनेता और सांसद शत्रुघ्न सिन्हा और पूर्व मंत्री और पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने भी इस मौके पर अपनी बात रखी।

शत्रुघ्न सिन्हा ने पाकिस्तान के अपने दौरे का ज़िक्र करते हुए कहा कि बेशक दिलों को जोड़ने वाली कोई भाषा है तो वह उर्दू ही है। उन्होंने कहा कि फिल्मों में उर्दू पूरी तरह जिंदा।

जापान के शहर ओसाका से आने वाले शायर सोयामाने ने बताया कि किस तरह उनके विश्वविद्यालय में कई छात्र बॉलीवुड फिल्म देखने के बाद उर्दू भाषा सीखने आते हैं।

स्पेनिश भाषा के प्रोफेसर और कवि ने बताया कि किस तरह पाकिस्तान से आने वाली एक गायिका के कलाम ने उन में उर्दू के प्रति प्यार पैदा किया। और इतना किया कि वह शेर कहने लगें।

मंसूर उस्मानी ने कहा, ‘जहां जहां कोई उर्दू ज़ुबान बोलता है … वहाँ वहाँ मेरा हिंदुस्तान बोलता है।

कनाडा से आने वाले जावेद दानिश ने कहा कि कैसे उर्दू की नई बस्तियां दुनिया भर में बस चुकी हैं और अब वहाँ से उन्हें उर्दू की सरजमी भारत बुलाया जा रहा है।