राजधानी दिल्ली को वर्ल्डक्लास और हेरिटेज सिटी बनाने के दावों की हकीकत से रू-ब-रू कराता एक सरकारी स्कूल जो सभी वर्गों की बात करने वाली सरकारों पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। 37 साल से कौमी सीनियर सेकंडरी स्कूल अस्थायी इंतजामों से चल रहा है और बच्चों के भविष्य को संवार रहा है। कई सरकारें आईं लेकिन किसी ने इसे एक छत तक मुहैया कराने की जहमत नहीं उठाई. फिलहाल दिल्ली की ऐतिहासिक ईदगाह मस्जिद ने अपने विशालकाय आंगन के एक कोने में स्कूल को पनाह दे रखी है।
टीन शेड के नीचे चल रहा स्कूल हर अनजान नजर को उजड़ने की कहानी बताने को बेताब हो जाता है। आसपास के क्षेत्र में सरकार द्वारा सहायता प्राप्त उर्दू माध्यम विद्यालय कस्बपुरा, कुरेश नगर, बादा हिंदू राव और आसपास के इलाकों के निवासियों के लिए है। स्कूल में एक बार चार मंजिला इमारत का कार्य हुआ था, जिसे 1976 में आपातकाल के दौरान ढहा दिया था। उसके बाद आपातकाल हट गया और लोकतांत्रिक अधिकार भी बहाल हो गए लेकिन स्कूल से किए गए वादे सरकारी फाइलों में दबकर रह गए।
इतने वर्षों में सभी तरह के तूफानों का सामना करने के बाद इसकी मौजूदगी अब खतरे में है क्योंकि दिल्ली सरकार इसे खत्म करने और इसके छात्रों और शिक्षकों को अन्य जगहों पर भेजने की कोशिश कर रही है। स्कूल शुरू करने से लेकर उसके विस्थापन की पीड़ा तक से जुड़े शिक्षाविद फिरोज अहमद बख्त बताते हैं कि स्कूल को ढहाने वाला आदेश डीडीए के तत्कालीन आयुक्त बीआर टमटा ने जारी किया था। जो उस समय कांग्रेस के सर्वेसर्वा संजय गांधी और जगमोहन के काफी करीबी थे।
आरोप रहे हैं कि मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए सराय खलील में इतनी बड़ी जनता आवासीय योजना जगमोहन की सलाह पर संजय गांधी ने तैयार कराई थी। शायद उन्हें मालूम था कि बच्चे वोट नहीं देते इसलिए इन्हें विस्थापित कर घर के बदले वोट हासिल करना आसान है। बख्त कहते हैं कि बच्चे सियासत के आसान शिकार बन गए। बख्त के मुताबिक बीते 15 साल के दौरान दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्र में 10 साल से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास स्कूल को जगह दिलाने की मांग उठाई जा चुकी है।
साथ ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख के नाते उप राज्यपाल के समक्ष भी मामला कई बार उठाया गया लेकिन हर तरफ से आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे मोहम्मद शरीफ (13) स्कूल को नियमित आते हैं। वे कहते हैं: ‘हालांकि यह किसी भी अन्य स्कूल की तरह नहीं है, लेकिन शिक्षक हमें यहाँ बेहतर पढ़ाते हैं। शरीफ स्कूल के पास रहता है।
स्कूल में एक शिक्षक एहसान अली के मुताबिक, यहां आने वाले बच्चों की सबसे बड़ी चुनौती मौसम की मार होती है। वे कहते हैं कि गर्मियों के दौरान, कक्षाओं में बहुत गर्मी होती है। सर्दी के दौरान बहुत ठंडा रहता है। इसके बावजूद स्कूल का हर साल रिजल्ट शत प्रतिशत रहता है।
सामाजिक कार्यकर्ता फ़िरोज़ अहमद बख्त ने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसमें सरकार से एक नई इमारत का निर्माण करने की मांग की है जैसा कि वादा किया गया था। उच्च न्यायालय इस मुद्दे पर विचार कर रही है और अल्पसंख्यक विद्यालय के लिए भूमि आवंटित करने की संभावना तलाशने के लिए आप सरकार और अन्य एजेंसियों से कहा है।
You must be logged in to post a comment.