“बाबरी मस्जिद ढाना सबसे बड़ी गलती थी”, कारसेवक से मुसलमान बने शख्स की दास्तान

महबूब नगर: उर्दू डेली अख़बार ‘एतमाद’ में छपे एक खबर के अनुसार बाबरी मस्जिद ढाने में सबसे आगे रहने वाले पानीपत के बलबीर सिंह ने जो अब मुसलमान हो गए हैं, माना कि बाबरी मस्जिद को ढाना सबसे बड़ी गलती थी।

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इस्लाम कुबूल करने बाद उनका नाम मोहम्मद आमिर रखा गया है। उन्होंने महबूब नगर का दौरा करते हुए मदरसा इस्लामिया तज्वीदुल कुरान शाह गट्टा में अपनी पूर्व जिंदगी और इस्लाम कुबूल करने की सारी डिटेल बताई। इस मौके पर उन्होंने बताया कि जब बाबरी मस्जिद के गुंबद पर उन्होंने पहली कुदाल चलाई थी तब उनके शरीर में एक तरह की बेचैनी और घबराहट पैदा हो गई थी।

लेकिन धर्म और जवानी के जोश ने इस हरकत से दूर नहीं रखा लेकिन हालत बिगड़ते देखकर दुसरे कारसेवकों ने मुझे घर पहुंचा दिया, जहां मैं अपने कारनामों पर गर्व महसूस कर रहा था और रेलवे स्टेशन से घर तक जनता मेरा स्वागत किया। लेकिन मेरे शिक्षक पिता ने मेरे लिए अपने घर के दरवाजे बंद करते हुए कहा कि जो मास्टर हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई भाई भाई की शिक्षा देता है उसी के बेटे ने आज मानवता को शर्मसार कर दिया है और उसी तारीख़ से मेरा दिल व दिमाग किसी काम का नहीं रहा।

डॉक्टरों से राबता करने पर दो तीन महीने जिंदा रहने की बात बताई गई और दूसरी ओर कारसेवक दोस्त जोगेंद्र पाल सिंह की हालत भी दिन बदिन बिगडती जा रही थी वह औरतों को हमेशा हवस की नजरों से देखता और खुद के कपड़े फाड़ लेता था और इस तरह अल्लाह ने दुनियां में उसे अपमानित कर दिया और हर कोई उसे चप्पल जूतों से मारने लगा। घर वालों हालत देखि तो उसको घर में बंद कर दिया लेकिन वह घर पर भी उसका रवैया नहीं बदला ऐसे में तंग आकर इलाज कराया जादू टोना तांत्रिक सबसे न उम्मीद होकर आखिर जोगेंद्र के पिता ने पता मालूम करते हुए मौलाना कलीम सिद्दीकी से मुलाक़ात की और सारी कहानी बताई तब मौलाना ने कुछ न करने और सिर्फ अल्लाह से माफ़ी मांगने का मशवरा दिया।

जिसपर उसका पिता स्थानीय मस्जिद के सामने ही गिडगिडाने लगा अचानक जोगेंद्र की तबियत में सुधार आने लगा। कुदरत के इस करिश्मे को देखते हुए जोगेंद्र के पिता और फिर जोगेंद्र ने भी इस्लाम कुबूल करते हुए अपना नाम मोहम्मद उमर रख लिया। जब बलबीर सिंह से भी ज़िक्र किया गया तो वह भी मौलाना से राबता करते हुए 11 जून 1993 को इस्लाम कुबूल कर लिया।