देवरिया के बालिका संरक्षण गृह (शेल्टर हॉउस) की घटना का सच सामने आने के बाद से ऐसे और मामले सामने आ रहे हैं। देवरिया के इस शेल्टर हॉउस को एक साल पहले ही अवैध घोषित कर दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद पुलिस वाले लड़कियों को वहां छोड़ जाते थे।
यह सवाल एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार से किया है कि ऐसा क्यों होता रहा?
देवरिया के बालिका गृह कांड की जांच करने एसआईटी शुक्रवार को देवरिया पहुंची। 5 अगस्त की देर रात गिरिजा त्रिपाठी की संस्थाओं पर छापेमारी कर पुलिस ने बालिका गृह कांड का खुलासा किया था।
इस संरक्षण गृह के कई कार्यक्रमों में न सिर्फ बड़े प्रशासनिक अधिकारियों बल्कि लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेताओं का भी आना-जाना होता था। गिरिजा त्रिपाठी नाम की ये महिला दो दशक से इस तरह की कई संस्थाओं का संचालन कर रही हैं।
इन संरक्षण गृहों में वो लड़कियां आती हैं जो घर से भागकर आई हैं, प्रेम विवाह करना चाहती हैं लेकिन अभी उनकी उम्र विवाह की नहीं हुई है और परिवार से उन्हें जान का खतरा है, या फिर तस्करों के चंगुल से बचकर आई हैं जहां किसी भी वजह से वो फंस गई थीं। इसके अलावा कुछ अपराधों में शामिल लड़कियों को भी पुलिस वाले इन संरक्षण गृहों में छोड़ जाते हैं जो बालिग नहीं होतीं।
मुजफ्फरपुर के बाद देवरिया और फिर हरदोई, गाजीपुर, प्रतापगढ़ और कानपुर से ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि ये सभी संरक्षण गृह गैर-सरकारी थे और पिछले कई सालों से सरकारी अनुदान पा रहे थे।
केंद्र सरकार ने भी इस बात को माना है कि अभी तक इन संरक्षण गृहों की ऑडिट के नाम पर इनके इंफ्रास्ट्रक्चर का ही ऑडिट होता रहा है, इनका सोशल आडिट, इनके संचालकों की जानकारी इत्यादि की उतनी गंभीरता से जांच नहीं की गई जितनी की जानी चाहिए थी।