‘मसलकी मतभेद और साम्प्रदायिकता के बावजूद आजाद भारत के इतिहास में मुसलमान इतने बेबस कभी नहीं थे’

भारतीय मुसलमान और उसके नेतृत्व व राजनितिक नेता समुदाय के प्रति कितने व्यवस्थित और कितने गंभीर हैं उसकी एक झलक तो 28 दिसंबर 2018 को संसद में उस समय नज़र आ गई थी। जब पूरी तैयारी के बाद सत्तारूढ़ भाजपा ने तलाक और मुसलमानों पर राजनितिक रोटी सेंकने वाले मुस्लिम नेता गधे की सिंग की तरह गायब नजर आए।

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एक बैठक की तीन तलाक सही है या गलत इस चीज़ पर बहस करना इसलिए बे फुजूल है कि हर मसलक के फ्लोअर अपने अपने हिसाब से उस पर अमल करते आ रहे हैं और यही तरीका उनके यहाँ चलने वाला भी है। हर पक्ष की ओर से कुरान व हदीस की रौशनी में जो दलील पेश किए जाते हैं, इससे पहले किताबों के और सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सअप और फ़ेसबुक के पेज पर भरे पड़े रहते हैं।

यहाँ पर सरगर्म अपने पसंदीदा मसलक से जुड़े लोगों के बीच जब सवाल जवा से बात नहीं बनती है तो वह हठधर्मी पर उतर आते हैं। इसलिए इस विषय से हटकर बात करना ज्यादा मुनासिब है। संसद में शीतकालीन सत्र के दौरान तीन तलाक पर प्रतिबंध का बिल लोकसभा से पास होकर राज्यसभा में पेश किया गया जहां सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं ने उसे पास कराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया मगर विपक्षी पार्टियों की गंभीर हंगामा करने की वजह से बिल को सलेक्ट कमीटी में भेजने की मांग पर अड़े रहने की वजह से पास नहीं किया जा सका।

अब अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए सरकार ऑर्डिनेंस जारी करने का प्लान बना रही है। महज़ हिन्दुओं को खुश करने के लिए मुसलमानों को डराने की हर संभव कोशिश में बिजी भाजपा फ़िलहाल इस लड़ाई में नाकाम हो गई है और राज्यसभा में विपक्ष के सामने झुकना पड़ा है।

अहम सवाल मुस्लिम नेतृत्व और राजनितिक नेताओं की दोहरी पालिसी का है। समुदाय के लोग उन चेहरों को पह्चान नहीं पा रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें हर जगह शर्मिंदगी ही हाथ लगती। यह विचार बिलकुल सही है कि जिस समुदाय में ऐसे नेता मौजूद होंगे तो उस समुदाय को नष्ट होने के लिए इतना काफी है। मुसलमानों को अब अन्य समुदायों के जरिए ढाए जा रहे अत्याचार व सितम का रोना रोना छोड़ कर, अपने रस्ते तलाशने होंगे, सही और गलत का जल्द फैसला करने से पहले उन्हें एक होना पड़ेगा।