नई दिल्ली: यह कोई अच्छी बात नहीं है कि उर्दू और हिंदी खानों में बंटे रहे। इन दीवारों को टूटना चाहिए और यह किताब उस ओर एक बड़ा कदम है। इन विचारों का इज़हार एनसीपीयुएल द्वारा आयोजित उर्दू घर नई दिल्ली में खुर्शीद अकरम की सेटिंग दी हुई किताब नई हिंदी शायरी की रिलीज़ के अवसर पर प्रसिद्ध विद्वान और विचारक प्रोफेसर शमीम हनफ़ी ने किया।
उन्होंने आगे कहा कि भाषाओं के बीच अंतर राजनीति ने पैदा किया है, जब भाषा और साहित्य राजनीति का एक हिस्सा बन जाएँ तो बड़ी तबाही आती है। शामीम हनीफ़ी ने आगे कहा कि इस किताब में शामिल कविताओं की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह इतनी आसान भाषा में है कि इसमें उर्दू कवितायें भी अगर मिला दी जाएँ तो यह आपस में घुल मिल जाएँ।
इस अवसर पर हिंदी के प्रसिद्ध विचारक प्रोफेसर विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि वह शायरी के बहुत कायल रहे हैं, लेकिन शायरी अब अपने विकास के उस स्तर में पहुंच गई है कि आज़ाद शायरी पढ़ कर भी महा काव्या का एहसास होता है। उन्होंने कहा कि दुनिया को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए शायरी की बहुत जरूरत है।