बिहार के एक गाँव में रहने वाले दिलशाद अहमद उन लोगों में से एक हैं जो सांप्रदायिकता की सोच से दूर होकर आपसी भाईचारे का सन्देश देते हैं।
रमजान का महीना चल रहा है। दिलशाद रमजान के महीने में पूरे दिन रोजा रखने के बाद इफ्तार के वक्त पहले तुलसी के पत्ते का सेवन करते हैं।
उनका कहना है कि तुलसी के पटे से इफ्तार करने की प्रेरणा उन्हें उनकी मां रइसन नेशा से मिली थी। दरअसल हमारी माँ बचपन से सभी भाई-बहनो को खांसी-जुकाम और अन्य बीमारियों से दूर रखने के लिए तुलसी का काढ़ा देती थीं। तुलसी हमारी सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है।
इस साल दिलशाद ने रोजे की शुरुआत अपने यहाँ तुलसी के पौधे लगाकर की है। उनके घर के आसपास तुलसी के कई पौधे हैं।
दिलशाद ने अपने तुलसी प्रेम को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है। जिसके चलते कुछ कटटरपंथियों उनका काफी विरोध भी किया है। लेकिन दिलशाद बिना किसी की प्रवाह किए अपना काम करने में यकीन रखते हैं।
कुछ साल पहले दिलशाद ने अपने बीमार पिता की सेवा करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी और पिता के गुजर जाने के बाद दिलशाद समाज में सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने के लिए कोशिशें कर रहे हैं।