अगर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सोशल मीडिया पर होते तो शायद उन्हें भारी संख्या में दिल वाली इमोजी मिल रही होतीं। सुप्रीम कोर्ट में हालिया फैसलों को लेकर इस 58 साल के जज की चौतरफा तारीफ हो रही है और उन्हें ‘द शाइनिंग स्टार ऑफ एससी’, ‘लिबरल लॉयन’ जैसे तमगों से नवाजा जा रहा है। आधार, प्राइवेसी, अडल्ट्री और सेक्शन 377 पर हालिया फैसलों में जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुल कर ‘असहमतियों’ की रक्षा में मूलभूत अधिकारों के पक्ष में आवाज बुलंद की है।
ऐसे में यह कहना आश्चर्यजनक नहीं है कि वह उदारवादियों के पोस्टर बॉय के रूप में उभर कर सामने आए हैं। इन फैसलों की वजह से बहुत तो लोया केस में उनके फैसले पर अपनी नाराजगी को भी भुला चुके हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ एक मुंबई बॉय के रूप में में बड़े हुए हैं जिन्होंने दिल्ली आने से पहले कैथेड्रल और जॉन कैनन स्कूल से पढ़ाई की है। इनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ सबसे लंबे समय तक भारत के चीफ जस्टिस रहे।
मार्च 2000 में चंद्रचूड़ ने अपने पिता का एक रेकॉर्ड तोड़ा। तब उन्होंने 40 साल 4 महीने की उम्र में हाई कोर्ट के जज के रूप में शपथ ली। सबसे कम उम्र में हाई कोर्ट का जज बनने का रेकॉर्ड इससे पहले उनके पिता के पास था। इस बीच यह जानना काफी रोचक है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो मौकों, निजता के मामले और आईपीसी से अडल्ट्री को हटाने, पर अपने पिता के फैसलों को ही पलटा था।
जस्टिस चंद्रचूड़ पिता की तरह ही अपने करियर की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। वह नवंबर 2022 में 2 साल की अवधि के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने की लाइन में भी खड़े दिख रहे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने हालिया केसों में अपने फैसलों को ऐसे तैयार किया है कि उन्हें न्यायविदों और वकीलों, सबकी तारीफ मिल रही है।
आधार पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच के फैसले में जस्टिस चंद्रचूड़ असहमति जताने वाले अकेले जज रहे। इस फैसले के बाद वकील गौतम भाटिया ने ट्वीट किया कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने युगों के लिए असहमति लिख दी है। करीब एक दशक पहले बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के रूप में चंद्रचूड़ ने एक मूवी स्क्रीनिंग पर लगी सरकारी रोक के विरुद्ध फैसला सुनाया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि सिविल सोसायटी में गवर्नेंस को असहमति की अभिव्यक्ति से बढ़ना चाहिए। पिछले शुक्रवार को चंद्रचूड़ ने एक बार फिर एल्गर परिषद केस (अर्बन नक्सली और भीमा कोरेगांव केस) में असहमति को जीवंत लोकतंत्र का सिंबल बताते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएन खानविलकर के उलट फैसला दिया।
सेंट स्टीफन ग्रैजुएट, डीयू से लॉ और हार्वर्ड से डॉक्टरेट की उपाधि लेने वाले चंद्रचूड़ अपने फैसलों में कानून का मानवीय चेहरा दिखाने के लिए जाने जाते हैं। चाहे वह गोद लेने वाले माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करना हो या उनके लिए फैसला लेना जो सेम सेक्स रिलेशनशिप में हैं।
आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला सुनाते हुए चंद्रचूड़ ने कहा था कि जो अलग हैं उन्हें स्वीकार करने की हमारी क्षमता दरअसल हमारे ही विकास का संकेत है। जस्टिस चंद्रचूड़ इस साल मार्च में इच्छा मृत्यु की वसीयत (लिविंग विल) को स्वीकार करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच का भी हिस्सा थे।
इस मामले में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक सम्मानित अस्तित्व, फैसले लेने का चुनाव व आजादी और व्यक्ति की स्वायत्तता एक सार्थक जीवन की चाह के मूल हैं। चंद्रचूड़ हाल में ही सबरमीला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की आजादी देने वाले बेंच में बहुमत के फैसले के साथ भी रहे। तब उन्होंने कहा था कि पूजा से महिलाओं का बहिष्कार गरिमा के खिलाफ, स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला और सभी मनुष्यों की समानता को इनकार करने जैसा है।