‘दूसरे समुदायों के मुकाबले मुसलमानों में तलाक के मामले बेहद कम’

जयपुर। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (महिला) की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ असमा जोहरा ने दावा किया कि मुसलमानों के बीच तलाक की दर अन्य समुदायों की तुलना में कम है और तीन तलाक़ का मुद्दे को गलत तरीके से पेश किया जा रहा था। देश भर में मुस्लिम केंद्रित जिलों में फैमिली कोर्ट में इकट्ठा किए गए आंकड़ों को साझा करते हुए असमा जोहरा ने कहा कि महिलाओं को अच्छी तरह से इस्लाम के तहत संरक्षित किया गया है, जो तलाक के लिए मुस्लिम महिलाओं के कम प्रतिशत से परिलक्षित होता है।

पारिवारिक अदालतों से डाटा एकत्र करने का काम पिछले साल मई में शुरू हुआ था जिसके तहत साल 2011-2015 तक मुस्लिम केंद्रित जिलों में पारिवारिक अदालतों में आरटीआई के जरिये इन आंकड़ों की मांग की गई थी। हमने इस रिपोर्ट को संकलित किया है जिसमें पता चलता है कि तलाक की दर मुस्लिम समुदाय में कम है। इसी तरह हम विभिन्न दारूल कज़ा से ब्योरा एकत्र करते हैं, जो संकेत देते हैं कि तलाक से संबंधित केवल 2-3 प्रतिशत मामले है, जिनमें से ज्यादातर महिलाओं ने उठाया। दारुल कजा एक इस्लामी शरीयत अदालत है।

 

शरीयत समिति के समन्वय में मुस्लिम महिला अनुसंधान केंद्र द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक मुसलमानों के लिए तलाक के मामलों की संख्या 1,307 के मुकाबले हिंदू की 16,505 थी। इन जिलों में ईसाइयों के तलाक के मामले भी थे। ये आंकड़े कन्नूर (केरल), नासिक (महाराष्ट्र), करीमनगर (तेलंगाना), गुंटूर (आंध्र प्रदेश), सिकंदराबाद (हैदराबाद), मलप्पुरम (केरल), एरनाकुलम (केरल) और पलक्कड़ (केरल) के आठ जिलों से हैं।

उन्होंने कहा कि आंकड़ों के संकलन पर काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में महिला सुरक्षित है। उन्हें पूरी सुरक्षा दी गई है। सरकार जान बूझकर इस मुद्दे को हवा दे रही है। जोहरा ने इस मौके पर सूचना के अधिकार कानून के तहत 26 परिवार अदालतों से मांगी गयी सूचना के आधार पर बताया कि तलाक का इस्तेमाल सबसे अधिक ईसाई समाज में हुआ है। मुस्लिम समाज में संख्या काफी कम है। जो मामले है उनमें भी महिलाओं द्वारा आगे आकर पुरूषों से ‘खुला’ लेने का मामला है।
उन्होंने कहा कि दहेज, घरेलू हिंसा, बाल विवाह, स्त्री भेदभाव जैसे सभी समुदायों में महिलाओं को प्रभावित करने वाले अन्य ज्वलंत मुद्दे थे। कामकाजी मुस्लिम महिलाओं के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि उनकी सुरक्षा को सबसे महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। कार्यशाला के पहले दिन इस्लाम में विवाह और तलाक के सत्र, कुरान में महिलाओं के अधिकार और संवैधानिक और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की भूमिका का आयोजन किया गया।

राजस्थान की महिला विंग के संयोजक और एआईएमपीएलबी के सदस्य यास्मीन फरुकी ने रविवार को करीब 30,000 महिलाओं को भाग लेने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि कुरान में सम्पति का एक चौथाई हिस्सा बेटियों को देने को कहा गया है। इसका पालन करते हुए सम्पति में से बेटियों को एक चौथाई हिस्सा मिले इसके लिए समाज को जागरूक करना होगा।