‘अयोध्या में राजनीति है, अपराध है, अदालत है और व्यवसाय भी है, नहीं है तो बस धर्म’

सुप्रीम कोर्ट भी अजीब है , जब उसे फैसले दे कर विवादों को विराम देने की पहल करनी थी, तब वह अदालत से बाहर समझौते की समझाईश दे रहा है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसने इलाहबाद उच्च न्यायालय के फैसले के अमल पर रोक लगाई थी।

यह जान लें कि दिनांक 21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है वह आदेश नहीं है, महज सलाह है। सनद रहे अयोध्या में मंदिर-मस्जिद का विवाद लगभग 290 साल पुराना है, इसमें कई सौ दंगे हो चुके हैं, दस हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। विवादास्पद ढांचे को ले कर सत्ता आती व जाती रही हैं।

यदि गंभीरता से देखें तो अयोध्या में राम लला के मंदिर में राजनीति है, अपराध है, अदालत है, सामाजिक समीकरण हैं, व्यवसाय भी है , नहीं है तो बस धर्म जिसके नाम पर यह प्रपंच रचा जा रहा है।

एक पक्ष कहता है कि मंदिर बने तो ठीक वहीं क्योंकि वहां भगवान राम का जन्म हुआ, जबकि तीन सौ से ज्यादा उपलब्ध रामायण को देखें व बांचें तो राम का जन्म कहीं मलाया में है तो कही बस्तर में तो कहीं श्रीलंका में, बहरहाल यह एक मिथक या पौराणिक कथा है व मंदिर समर्थक इतिहास और मिथक में फर्क करने को तैयार नहीं हैं।

दूसरी तरफ मुस्लिम समाज के कुछ नुमाइंदे, इस्लाम के उस सिद्धांत पर अमल करने को तैयार नहीं हैं कि जिस स्थान पर बुतपरस्ती हो वहां नमाज नहीं पढ़ी जा सकती। हर पक्ष अदालत के फैसले का सम्मान करने की बात कहता है। मुस्लिम पक्ष के हाशिम मियां अब दुनिया में हैं नहीं। इस समय इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने वाले सुब्रहण्यम स्वामी किसी भी पक्ष से नहीं हैं।

सनद रहे कि अयोध्या विवाद में मुकदमा जमीन को लेकर है, जिसमें दो बातें महत्वपूर्ण होती हैं – कब्जा और दस्तावेज। दोनों पक्षों के पास इन दोनो मसलों के पर्यापत सबूत हैं। यह भी सच है कि मुस्लिम समाज का बड़ा वर्ग अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष मे हैं और वह जानता है कि बीते 70 साल से जहां रोज पूजा हो रही है, वहां वे नमाज नहीं पढ पाएंगे।

लेकिन इस आग को जलाए रखने में कई लोगों के हित सध रहे हैं। यदि बात आपसी सहमती से ही निबट जाती तो इतने लम्बे मुकदमे, सत्ता संघर्ष, दंगे होते ही क्यों? पता नहीं, क्या हो रहा है , जब सुप्रीम कोर्ट इस तरह अनिर्णय की स्थिति में है, जब वह हाई कोर्ट के आदेश पर पहले स्टे देता है और फिर उसे सालों लटका कर मध्यस्थता की बात करता है।

कुछ कुछ मंशा पर शक होता है, इस देश के लोग मंदिर-मस्जिद जैसे विवादों से ऊब गए हें, यदि तथ्य हैं तो वहां तत्काल मंदीर बनवा दो और उसके बाद बनारस और मथुरा के विवाद शुरू करो ताकि आने वाले कम से कम पचास साल और भगवान् के नाम पर मिल बैठ आकर खाया जाय।

(पंकज चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार)