कारगिल युद्ध लड़ाने वाले फौजी मोहम्मद सनाउल्लाह विदेशी करार!

तीस साल तक भारतीय सेना में काम करने वाले मोहम्मद सनाउल्लाह को असम में विदेशी करार देकर एक डिटेंशन शिविर में भेज दिया गया है। इससे राज्य में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) की प्रक्रिया पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं।

लगभग तीस साल तक सेना में नौकरी करने वाले सनाउल्लाह 2017 में सूबेदार के तौर पर रिटायर होने के बाद असम पुलिस की सीमा शाखा में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर काम कर रहे थे।

उन्होंने कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया था। उनके परिवार ने विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले को गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जारी एनआरसी कवायद के तहत अंतिम सूची 31 जुलाई को प्रकाशित होनी है।

डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, शुरू से ही एनआरसी की प्रक्रिया विवादों में रही है। इसबीच सुप्रीम कोर्ट ने असम के अधिकारियों को बिना किसी हड़बड़ी के तमाम आपत्तियों पर निष्पक्ष सुनवाई का निर्देश दिया है।

ताजा मामले पर असम पुलिस की वरिष्ठ अधिकारी मौसमी कलिता बताती हैं, “सनाउल्लाह ने तीस साल तक सेना में नौकरी की है. लेकिन न्यायाधिकरण की ओर से विदेशी घोषित किए जाने के बाद हमने उनको डिटेंशन सेंटर में भेज दिया है। उनका कहना था कि पुलिस महज न्यायाधिकरण के आदेश पर अमल करती है, उसे यह पता नहीं है कि किस आधार पर उनको विदेशी घोषित किया गया है।

वहीं सनाउल्लाह के वकील अमन वदूद बताते हैं, “यह पहचान की गलती है। न्यायाधिकरण के आदेश में सनाउल्लाह को एक मजदूर बताया गया है जो 1971 के बाद बिना किसी वैध कागजात के भारत आया था। लेकिन सनाउल्लाह के परिवार के पास 1935 तक से ही जमीन के दस्तावेज हैं।

नागालैंड सीमा से लगे ग्वालपाड़ा जिले के एक डिटेंशन सेंटर में भेजे जाने से पहले सनाउल्लाह ने पत्रकारों से कहा, “तीस साल तक भारतीय सेना में काम करने का मुझे यही इनाम मिला है।

मैं हमेशा भारतीय था और रहूंगा। एनआरसी के अंतिम मसौदे में नाम शामिल नहीं होने के बाद सनाउल्लाह ने सेना में भर्ती और नौकरी से संबधित तमाम रिकॉर्ड एनआरसी सेवा केंद्र में जमा किए थे लेकिन उन पर ध्यान ही नहीं दिया गया।

इससे भी दिलचस्प बात यह है कि 2008 में सीमा पुलिस ने अपनी जांच के बाद जो रिपोर्ट जमा की थी, उसमें सनाउल्लाह की उम्र 50 साल और पेशा मजदूरी बताया गया था। उस समय सनाउल्लाह सेना में काम करते हुए मणिपुर में उग्रवाद-विरोधी अभियान में तैनात थे। सेना के कागजात में उनकी उम्र 52 साल बताई गई है।

साल 2008 की रिपोर्ट के बाद विदेशी न्यायाधिकरण ने बीते साल सितंबर में सनाउल्लाह को एक नोटिस भेजा था। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि सनाउल्लाह ने नागरिकता के अपने दावे के समर्थन में वोटर लिस्ट, स्कूल प्रमाणपत्र, जमीन के दस्तावेज और ग्राम प्रधान के प्रमाणपत्र समेत कई कागजात पेश किए थेलेकिन इससे न्यायधिकरण को उनकी नागरिकता के बारे में कोई ठोस सबूत नहीं मिला।