‘धर्मनिरपेक्षता का अस्तित्व संघर्ष में ही छिपा है’

अंकित और उसके खोई हुई मोहब्बत को शर्द्धान्जली पेश किया जाना चाहिए, जिसकी जिंदगी के चिराग को गुल कर दिया गया था, उसकी हौसलामंद महबूबा ने अपने ही परिजनों को आरोपी करार दिया है। हालाँकि विभिन्न प्रकृति का संवेदनशील मामला था, लेकिन यह भी हिंसा और आतंकवादी का ही एक अमल था।

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बचपन से ही उसकी नजर में रहने वाली लड़की के परिजनों के साथ विवाद होने पर 23 साला अंकित सक्सेना का बेरहमी से गला काट कर जब हत्या कर दी गई थी भाजपा के आमतौर पर संदिग्ध समझे जाने वाले नेता (मनोज तिवारी) और बजरंग दल के सदस्यों ने उस तयशुदा साजिश और नफरत भरे अमल को साम्पदायिकता में बदल दिया गया।

जबकि धर्मनिरपेक्षता में यकीन रखने वाले और धार्मिक विकसित लोगों ने तकलीफ़देह ख़ामोशी इख़्तियार कर ली थी फिर भी इस मामले की जनता की ओर से सरगोशियाँ सुनाई देने लगी। आस्था और जात पात के नाम पर निशानदेही और व्यवस्थित हत्याओं में भी एक फर्क हो सकता है, लेकिन अंकित के निर्मम हत्या पर ख़ामोशी इख़्तियार करने, व्यक्तिगत बेरहमी और जूनून के एक गंभीर अमल के प्रति सत्यनिष्ठ रहना है।

नौजवान अंकित सक्सेना की हत्या को “धर्मनिरपेक्षता और संविधान को खतरा है’ के नजरिये से अलग करके भी देखा जा सकता है और इस संबंध में सरगोशियाँ करने की भी ज़रूरत नहीं, क्योंकि ‘लव जिहाद’ नज़रिया के कड़े समर्थकों के विपरीत यह एक मृत हिन्दू लड़के का मामला है जबकि ‘लव जिहाद’ का शोशा मुस्लिम लड़कों से जोड़ा जाता है। क्योंकि दोनों सम्प्रदायों के बीच ज़बरदस्त धार्मिक खला पैदा हो गया है, लिहाज़ा उसके नतीजे के प्रभाव भी समान हैं, जिसकी वजह से नौजवानों में लोकतांत्रिक मूल्यों को कम और अलगाववादी जज्बे को ही बढ़ावा मिलेगा।