जम्मू-कश्मीर: बिजली सेक्टर को बढ़ावा देने वाली योजना ‘रोशनी एक्ट’ को किया गया खत्म

राज्य सरकार ने सरकारी भूमि पर कब्जा करने वालों को मालिकाना हक देने के लिए बनाई गई रोशनी योजना को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया है। निरस्त की गई इस योजना के प्रावधानों के तहत की जाने वाली कोई भी कार्रवाई अब वैध नहीं होगी। राज्यपाल सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता वाली राज्य प्रशासनिक परिषद की बैठक में यह अहम फैसला लिया गया हैं।

यह योजना वर्ष 2001 में बनाई थी। इसका मकसद कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के साथ राज्य में अधर में लटके बिजली प्रोजेक्टों को पूरा करने के लिए धन जुटाना था।

योजना अपने मकसद में नाकाम साबित हुई। योजना के तहत राज्य में लोगों के कब्जे वाली 20.55 लाख कनाल सरकारी भूमि के मालिकाना अधिकार दिए जाने थे। बाद में सिर्फ 15.88 प्रतिशत भूमि ही मालिकाना अधिकार देने के योग्य पाई गई व ऐसे में उम्मीद से काफी कम धन जुटा व योजना तय मकसद में नाकाम हो गई।

योजना के नियमों के तहत 31 मार्च 2007 के बाद सरकारी भूमि के मालिकाना अधिकारों के लिए आवेदन नही किया जा सकता था। ऐसे में यह योजना 2007 में ही आप्रासंगिक हो गई थी। रोशनी योजना को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई थी।

उच्च न्यायालय ने योजना के तहत कार्रवाई पर रोक लगाने के साथ ये निर्देश भी दिए थे कि मालिकाना अधिकार हासिल करने वाले न तो इसे बेच पाएंगे और न ही इसपर कोई निमार्ण ही कर सकेंगे। यह जनहित याचिका इस समय उच्च न्यायालय में लंबित है।

ये निर्देश भी हैं कि अगला आदेश जारी होने तक ऐसी जमीनों को लेकर कोई लेन देन भी नही हो पाएगा। राज्य प्रशासनिक परिषद की बैठक में मौजूद राज्यपाल के सलाहकार बीबी व्यास, खुर्शीद गनई, के विजय कुमार, केके शर्मा के साथ राज्य के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रामाण्यम व राज्यपाल के प्रमुख सचिव उमंग नरूला सहित अन्यों ने इस योजना के मकसद व प्रभाव पर गौर करने के बाद पाया कि यह न तो मकसद में कामयाब हुई और न ही इस समय प्रासंगिक है। ऐसे में बुधवार को तत्काल प्रभाव से इसे खत्म कने का फैसला कर दिया गया।

सरकार ने वर्ष 2001 में रोशनी एक्ट बनाया था और इससे इकट्ठा होने वाली धनराशि को बिजली सेक्टर के प्रोजेक्ट में लगाने की बात कही गई थी। वर्ष 2004 में रोशनी एक्ट में संशोधन किया गया।

संशोधन से पहले एक्ट में प्रावधान था कि 1999 से पहले कब्जे वाली जमीन के मालिकाना हक दिए जाएंगे, लेकिन संशोधन में तबदीली करते हुए निर्धारित तिथि को समाप्त कर दिया गया।

नया प्रावधान शामिल किया गया। व्यवस्था बनी कि जिसके कब्जे में सरकारी जमीन है वह योजना के तहत आवेदन कर सकता है। इससे सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण और भी ज्यादा हुआ।

नवंबर 2006 में सरकार के अनुमान के मुताबिक 20 लाख कनाल से भी ज्यादा भूमि पर लोगों का अवैध कब्जा था। रोशनी एक्ट के तहत कमेटियां बनाई गई, जिन्हें भूमि का मार्केट रेट निर्धारित करना था, लेकिन नियमों को ताक पर रख दिया गया।

राज्य सरकार की तरफ से गरीबों और कब्जा धारकों को जमीनों का मालिकाना हक देने के लिए शुरू की गई रोशनी योजना में 25 हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप हैं। यह आरोप किसी और ने नहीं बल्कि सीएजी ने लगाए थे।

यह आरोप तत्कालीन प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल (आडिट) जम्मू-कश्मीर एससी पांडे के थे। उन्होंने कहा था कि सरकार और राजस्व विभाग ने सभी नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाकर जमीन बांटी और जम्मू-कश्मीर के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े घोटाले की इमारत तैयार कर दी।

इतना ही नहीं, कृषि भूमि को मुफ्त में ही ट्रांसफर कर दिया गया। इसके लिए पत्रकार वार्ता हुई थी जिसमें प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने कंप्ट्रोलर एंड आडिटर जनरल ऑफ इंडिया (सीएजी) की वर्ष 2012-13 की रिपोर्ट में रोशनी एक्ट से जुड़ी योजना के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया था।

यह कहा गया था कि अनुमान था कि राज्य की 20,64,792 कनाल भूमि पर हुए अवैध कब्जे का लोगों को मालिकाना हक देकर 25,448 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे, लेकिन कानून पर अमल नहीं किया गया। लोगों को 3,48,160 कनाल भूमि का हक देते हुए 317.54 करोड़ रुपये की जगह मात्र 76.24 करोड़ रुपये ही वसूले गए।

रोशनी एक्ट को नजरअंदाज करते हुए अलग से नियम तैयार कर 3,40,091 कनाल कृषि भूमि को निशुल्क ही ट्रांसफर कर दिया गया। प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल ने कहा था कि उनके कार्यालय ने बार-बार राजस्व विभाग से रोशनी योजना के तहत लाभांवितों की सूची व जानकारी देने के लिए कहा, लेकिन महीनों लटकाकर रखा गया। जानकारी नहीं दी गई।

आखिरकार सीएजी ने 31 जुलाई 2013 को रिपोर्ट तैयार कर ली। उनके पास सिर्फ 547 मामलों की जानकारी आई। इसमें 666 कनाल भूमि को ट्रांसफर करते हुए रियायतें दे दी गई।

25 हजार करोड़ रुपये का राजस्व इकट्ठा कर बिजली प्रोजेक्ट में खर्च करने का मुख्य उद्देश्य गड़बड़ियों की भेंट चढ़ गया। यकीनन इसे एक बड़ा घोटाला कहा जा सकता है। 25 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य वर्ष 2006 का था, अब तो काफी वर्ष हो गए हैं।

यह धनराशि ओर भी अधिक होगी। यह कहा गया था कि उनके पास ऐसी जानकारी नहीं है जिसमें वे इसमें शामिल लोगों के बारे में बता सकें। रोशनी योजना पूरी तरह से विफल साबित हुई और इसका मकसद पूरा नहीं हुआ।

साभार- ‘दैनिक जागरण’