भारतीय क्रिकेट में ऐसे पिता-पुत्र की जोड़ियां बहुत कम ही रही हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी हो। ऐसा हुआ है कि या तो पिता बहुत बड़े क्रिकेटर रहे हैं और बेटा उनके पदचिन्हों पर चलते हुए बहुत नाम नहीं कमा सका, या फिर ऐसा हुआ है कि बेटा अपने पिता से आगे निकलते हुए क्रिकेट का बहुत बड़ा खिलाड़ी बन गया। ऐसा बहुत कम ही हुआ है कि पिता और पुत्र दोनों ने ही भारतीय क्रिकेट में झण्डे गाड़े हों। हम
आइये ‘फादर्स डे’ के मौके पर आपको ऐसे ही कुछ पिता-पुत्र की जोड़ियों के बारे में बता रहे हैं।
इफ्तिखार अली खान पटौदी और मंसूल अली खान पटौदी
भारतीय क्रिकेट में पटौदी सीनियर के नाम से पहचाने जाने वाले इफ्तिखार अली खान पटौदी इकलौती ऐसे क्रिकेटर रहे हैं, जिन्होंने भारत और इंग्लैंड दोनों के लिए क्रिकेट खेला। पटौदी सीनियर ने सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर एशेज सीरीज के अपने पदार्पण टेस्ट मैच में शतक बनाया था। उन्होंने इंग्लैंड और भारत दोनों के लिए तीन-तीन टेस्ट मैच खेले। अब बारी उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी की थी। जूनियर पटौदी को उनके निर्भिक नेतृत्व क्षमता के कारण ‘टाइगर पटौदी’ कहा जाने लगा।
टाइगर पटौदी मात्र 21 साल की उम्र में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बने और 40 टेस्ट मुकाबलों में उन्होंने भारत का नेतृत्व किया। उनकी ही कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने साल 1967 में न्यूजीलैंड को उसके घर में हराकर विदेशी सरजमीं पर अपनी पहली जीत दर्ज की थी।
लाला अमरनाथ और मोहिंदर अमरनाथ
भारत के लिए खेलने वाली पिता-पुत्र की सबसे सफल जोड़ी लाला अमरनाथ और मोहिंदर अमरनाथ ही हैं। लाला अमरनाथ को आजाद भारत का पहला क्रिकेट कप्तान होने का गौरव हासिल था। लाला अमरनाथ ने भारत के लिए 24 टेस्ट मैच खेले और सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के चयनकर्ता, कोच और मैनेजर की भूमिकाएं भी निभाईं। उनके पुत्र मोहिंदर अमरनाथ भारत के सर्वश्रेष्ठ हरफनमौला क्रिकेटरों में से एक हैं। उन्होंने 1983 में भारत की पहली विश्व विश्व कप जीत में अहम भूमिका निभाई। मोहिंदर अमरनाथ ने भारत के लिए 69 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने 11 शतकों के साथ 4378 रन बनाए। उन्होंने 85 एकदिवसीय मुकाबलों में 2 शतक और 13 अर्धशतकों के साथ 1924 रन बनाए।
विजय मांजरेकर और संजय मांजेकर
विजय मांजेकर को तेज गेंदबाजी का बेहतरीन अंदाज में सामना करने वाले भारत के प्रमुख क्रिकेटरों में गिना जाता है। विजय ने भारत के लिए 1952 में पदार्पण किया। उन्होंने अपने करियर में खेले गए 55 टेस्ट मुकाबलों में 7 शतकों और 15 अर्धशतकों की मदद से 3208 रन बनाए। हालांकि, उनके पुत्र संजय मांजरेकर अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए क्रिकेट खेला जरूर, लेकिन वह मुकाम नहीं हासिल कर सके जो उनके पिता ने हासिल किया था। संजय ने भारत के लिए 37 टेस्ट (4×100, 9×50) और 74 एकदिवसीय (1×100, 15×50) मुकाबले खेले, जिसमें उन्होंने क्रमश: 2043 और 1994 रन बनाए।
सुनील गावस्कर और रोहन गावस्कर
सुनील गावस्कर की गिनती भारत सहित दुनिया के महान क्रिकेटरों में की जाती है। उन्होंने भारत के लिए खेलते हुए कई सारे स्थापित कीर्तिमानों को तोड़ा और नए कीर्तिमान स्थापित किए। वह टेस्ट क्रिकेट में 10,000 रन और 30 शतक बनाने वाले पहले क्रिकेटर हैं। सुनील गावस्कर ने भारत के लिए 125 टेस्ट मैचों में 34 शतकों और 45 अर्धशतकों के साथ 10,122 रन बनाए हैं। उन्होंने देश के लिए 108 एकदिवसीय मैचों में 1 शतक और 27 अर्धशतकों के साथ 3092 रन बनाए हैं। उनके पुत्र रोहन गावस्कर ने भी भारत के लिए क्रिकेट खेलने का सपना देखा और टीम में जगह बनाने में भी कामयाब हुए। लेकिन रोहन अपने पिता की तरह एक सफल क्रिकेटर नहीं बन सके और सिर्फ 11 एकदिवसीय मुकाबलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर सके।
योगराज सिंह और युवराज सिंह
भारतीय क्रिकेट में पिता और पुत्र की इस जोड़ी की कहानी बहुत दिलचस्प है। युवराज के पिता योगराज ने घरेलू क्रिकेट में अपने प्रदर्शन से चयनकर्ताओं को प्रभावित किया था और भारतीय टीम में स्थान बनाने में भी कामयाब रहे थे। लेकिन, वह सिर्फ एक टेस्ट और 6 एकदिवसीय मुकाबलों में ही देश का प्रतिनिधित्व कर सके। योगराज और कपिल देव ने एक साथ ही क्रिकेट खेलना शुरू किया था। योगराज सिंह के साथ खेलने वाले क्रिकेटरों ने इस बात को हमेशा स्वीकार किया है कि उनमें एक जबरदस्त हरफनमौला खिलाड़ी बनने की क्षमता थी, लेकिन वह अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सके। योगराज ने अपने असफल रहे क्रिकेटिंग करियर से सीख लेते हुए अपने बेटे युवराज को एक बेहतरीन क्रिकेटर बनाने का संकल्प लिया और उसे पूरा भी किया। विश्व क्रिकेट को युवराज सिंह के रूप में एक विस्फोटक बल्लेबाज मिला। युवराज सिंह ने भारत को दो विश्व कप खिताब (2007 में T20 WC और 2011 में ODI WC) जीताने में अहम भूमिका निभाई। इन दो बड़ी सफलताओं के अलावा युवराज सिंह ने इंग्लैंड के तेज गेंदबाज स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ओवर की सभी 6 गेंदों पर 6 छक्के जड़कर क्रिकेट इतिहास के इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा लिया।
रोजर बिन्नी और स्टुअर्ट बिन्नी
भारतीय क्रिकेट में आज तक जितने भी हरफनमौला खिलाड़ी हुए हैं, उनमें रोजर बिन्नी का नाम सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में गिना जाता है। रोजर बिन्नी की प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1983 के विश्व कप में उन्होंने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों के बीच सबसे ज्यादा (18) विकेट चटकाए। भारत के पहले विश्व कप खिताबी जीत में रोजर बिन्नी ने भी एक नायक की भूमिका निभाई थी। उन्होंने भारत के लिए 27 टेस्ट और 72 एकदिवसीय मुकाबलों में क्रमश: 830 और 629 रन बनाए। वहीं, गेंदबाजी में उन्होंने क्रमश: 47 और 77 विकेट हासिल किए। अपने पिता रोजर की तरह ही स्टुअर्ट बिन्नी भी मीडियम पेस बॉलिंग और दाएं हाथ से बैटिंग करते हैं, लेकिन वह अपने पिता की तरह बहुत बड़ा मुकाम नहीं हासिल कर पाए। स्टुअर्ट ने भारत के लिए अब तक 6 टेस्ट और 14 एकदिवसीय मुकाबले खेले हैं, जिसमें उन्होंने क्रमश: 194 और 230 रन बनाए हैं। गेंदबाजी में उन्होंने क्रमश: 3 और 20 विकेट चटकाए हैं। एकदिवसीय मैचों में उनके नाथ एक रिकॉर्ड जरूर दर्ज है, जब उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ 2014 में मात्र 4 रन देकर 6 विकेट चटकाए थे।
सचिन तेंदुलकर और अर्जुन तेंदुलकर
विश्व क्रिकेट में भगवान का दर्जा प्राप्त कर चुके मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बारे में क्या कहना। वह क्रिकेट के सर्वकालीन महान खिलाड़ियों में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। वह, दुनिया के मात्र इकलौते बल्लेबाज हैं जिनके नाम 100 शतक दर्ज हैं। वह टेस्ट (200 मैच में 15921 रन, 51×100, 68×50) तथा वनडे (463 मैच में 18426 रन 49×100, 96×50)में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले क्रिकेटर हैं। सचिन के पुत्र अर्जुन ने भी पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए क्रिकेट को अपने करियर के रूप में चुना है। हालांकि, अर्जुन अभी सिर्फ 18 साल के हैं और उन्हें हाल ही में श्रीलंका दौरे के लिए भारत की अंडर-19 टीम में चुना गया है। अर्जुन एक हरफनमौला खिलाड़ी हैं और बाएं हाथ से तेज गेंदबाजी के साथ बाएं हाथ से ही बल्लेबाजी भी करते हैं। अर्जुन अपने प्रदर्शन के दम पर भारतीय टीम में जगह बना पाएंगे या नहीं, यह तो भविष्य के गर्व में है।