यह है दिल्ली के गीता घाट पर स्थित अमन रकोरी शेल्टर होम। इसकी नीली दीवारों पर इसबेस्टर की चादर तनी हुई है। यह जून की भीषण गर्मी में आग के गोले जैसी गर्म हो जाती है। पंखे भी इत्मिनान कम और गर्म हवा ज्यादा देते हैं।
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ऐसी परिस्थितियों में एक चेहरा दौड़ दौड़ कर सब की जरूरतों को पूरा कर रहा होता है। उस चेहरे का नाम मोहम्मद इनाम है। वह रकोरी का इंचार्ज है। इनाम बताते हैं कि यह पहली ईद होगी, जिसमें वे घर से दूर हैं। हालांकि उन्हें इसका मलाला कम, सुकून ज्यादा है कि वे जरूरतमंदों की आवश्यकता में काम आ रहे हैं।
रमजान की कुछ यादें भी जहन में हैं। अम्मी के हाथों का खाना और ईद उन्हीं यादों का हिस्सा है। आधी रात में सेहरी के लिए अम्मी टेर लगाती, हम बच्चे आँखें बंद किये ही छोटे बड़े निवाले मुंह में रखने लगते, तब अम्मी प्यार से खुद ही खिलाती।
हम अच्छे से खाकर फिर सो जाते, बगैर यह देखे कि अम्मी ने कुछ खाया भी या नहीं, लेकिन सबसे इदी की फरमाइश करते, सालभर जिन चीज़ों का इंतज़ार रहता, ईद पर वह सब मिल जाता।