इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के 6 दिवसीय भारत दौरे से भारत के लोगों को भी तकलीफ पहुंची है। भारत के विभिन्न जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुआ। विरोध के बीच सुझाओं को भी स्वीकार किये गये यानी नाराजगी जाहिर करने के जो भी शांतिपूर्ण तरीके हो सकते थे हैं उन सब का इस्तेमाल किया गया। लेकिन जिस तरह की बातें पाकिस्तान की तरफ आये हैं वह चौंकाने वाला है।
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आखिर पाकिस्तान की तरफ ये बयान क्यों आया कि भारत, अमेरिका और इजराइल के बीच त्रिकोणीय दोस्ती पुरे विश्व इस्लाम के लिए खतरा है? आखिर अपने जाती खौफ व डर को पुरे विश्व इस्लाम पर क्यों थोपा जा रहा है? ये बहुत ही महत्वपूर्ण और बड़ा सवाल है, जिसपर विचार करने की जरुरत है।
पहली बात तो यह है कि अमेरिका और इजराइल से भारत की दोस्ती कोई नई बात नहीं है। जब 1992 में पहली बार भारत में इजराइली दूतावास का निर्माण हुआ तो उस समय भी हंगामा हुआ था। पुरे देश भर में विरोध प्रदर्शन किया गया था। सरकार के खिलाफ नारे बाजी हुई थी। इजराइल से रिश्ता खत्म करने और दूतावास फौरी तौर पर बंद करने का मांग किया गया था।
मांग जायज था क्योंकि भारत हमेशा से फिलिस्तीन के साथ रहा है, और फिलिस्तीन से न सिर्फ दोस्ती बल्कि उनकी मदद के लिए भी तैयार रहा है। लेकिन जब इजराइली दूतावास भारत में बना था तो यह खतरा बन गया था कि अब फिलिस्तीन की समर्थन इस पैमाने पर मुमकिन नहीं है कि जैसे पहले होती थी।
फिर यह भी खतरा था कि इजराइल बहुत तेजी से अपना पैर भारत की धरती पर फैला लेगा। मुझे नहीं मालूम नही है कि हकीकत क्या है लेकिन ये एतिहासिक सच्चाई है कि 1992 में इजराइली दूतावास का निर्माण हुआ था और उसी साल 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद कर दी गई थी। लोग इजराइल के मुद्दे भूल गये थे और इस नए मुद्दे में उलझ गये थे क्योंकि बाबरी मस्जिद की शहादत कोई मामूली बात नहीं थी। इसके बाद पुरे देश में जो कुछ हुआ उससे हम सब परिचित हैं।
डॉ. मुमताज आलम रिजवी