गंगा-जमनी तहज़ीब जिंदगी के समन्दर में हरे-भरे आइलैंड की तरह है: प्रोफ़ेसर शमीम हनफ़ी

नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इसलामिया के उर्दू विभग और एनसीपीयूएल के सहयोग से ‘फिराक यादगारी खुतबे’ का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर शमीम हनफ़ी ने कहा कि नीर मसूद अतीत के बजाय भविष्य का फिक्शन निगार है। लेकिन अतीत से रंग, रौशनी और खुश्बू जरूर मिक्स है।

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उन्होंने कहा कि नीर मसूद का अतीत दरअसल भारत की अजीब व गरीब संस्कृति है, जिसको भारतीय इस्लामी सभ्यता से व्याख्या किया जा सकता है। और इस संस्कृति का खूबसूरत तोहफा उर्दू ज़बान है। हमारे जमाने में इसकी महारत सबसे ज्यादा नीर मसूद को हासिल था।

स्वागत के भाषण में विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर शाहीरे रसूल ने स्वागत करते हुए कहा कि फिराक यादगारी भाषण इस विभाग का प्रतिष्ठित और सम्मानजनक सिलसिला है और इसके लिए उर्दू दुनियां के प्रख्यात उर्दू शख्सियत को दावत दी जाती है।