वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश के पूर्व पति एवं टाइम्स ऑफ इंडिया के अमेरिका संवाददाता चिदानन्द राजघट्ट ने गौरी को याद करते हुए एक लेख लिखा है। उन्होंने गौरी के साथ बीते पल और तलाक के बाद भी जारी रही दोस्ती को बहुत ही संवेदनशील तरीके से याद किया है।
चिदानन्द राजघट्ट ने लिखा, “अगर गौरी लंकेश खुद पर लिखी श्रद्धांजलियां और तारीफें पढ़ रही होती तो हंसती, खास तौर पर जिनमें आत्मा, मृत्य के बाद जीवन और स्वर्ग इत्यादि का जिक्र है। अगर वो नहीं भी हंसती तो मुस्कराती ज़रूर।”
चिदान्नद ने बचपन की यादों को ताज़ा करते हुए लिखा, “मैंने और गौरी लंकेश ने बचपन में तय कर लिया था कि स्वर्ग, नरक और पुनर्जन्म जैसी चीजें बकवास हैं। हमने ये भी तय किया था कि हम किसी को दुख नहीं पहुचाएंगे।”
गौरी से पहली मुलाकात को याद करते हुए चिदानन्द ने लिखा, “मेरी गौरी लंकेश से कर्नाटक के “नेशनल कॉलेज” में मुलाकात हुई थी जो तर्कवादियों की जन्मस्थली है। बचपन से ही गौरी और मैं धार्मिक गुरुओं, अंधविश्वासों, कुरीतियों पर सवाल उठाते रहे थे”।
चिदानन्द ने बताया कि उन्होंने पांच साल के प्रेम के बाद गौरी से शादी की थी। हालांकि शादी के पांच साल बाद ही उन दोनों का तलाक हो गया। लेकिन तलाक के बाद भी दोनों “अच्छे दोस्त” बने रहे।
चिदानन्द के सिगरेट की आदत का ज़िक्र करते हुए लिखा, “कॉलेज में गौरी को मेरा सिगरेट पीना नापसंद था। बाद में जब मैंने सिगरेट पीना छोड़ दिया, लेकिन तब तक गौरी खुद सिगरेट पीने लगी थीं। एक बार गौरी जब मेरे पास अमेरिका आई थीं तो मैंने उनसे सिगरेट छोड़ने के लिए कहा। गौरी ने तब जवाब दिया, ‘मुझे तो तुम्हारी वजह से ही सिगरेट की लत लगी’! मैंने उनसे कहा कि मैं उनकी सेहत की चिंता की वजह से सिगरेट छोड़ने के लिए कह रहा हूं तो इस पर गौरी ने जवाब दिया, “मैं तुमसे ज्यादा दिन जिंदा रहूंगी’!
चिदानन्द ने बताया कि तलाक के बावजूद दोनों में कभी कड़वाहट नहीं आई। शादी के दौरान उनके बीच कुछ अनबन हुई लेकिन दोनों बहुत जल्द उससे आगे बढ़ गए। चिदानन्द के मुताबिक जिस दिन अदालत में उनका तलाक हुआ वो एक-दूसरे का हाथ पकड़े कोर्ट पहुंचे थे और तलाक के बाद एक साथ एमजी रोड के ताज डाउन में लंच करने गये थे। तलाक के बाद भी वो दिल्ली, फिर मुंबई और बाद में वाशिंगट डीसी में उनसे मिलती रहती थीं।
चिदानन्द ने गौरी के प्यार और बेटियों के लिए उनकी परवाह को याद करते हुए कहा कि करीब आठ साल पहले जब उन्होंने अपने बेंगलुरु स्थित घर पर एक महिला को सहायक के तौर पर रखा तो गौरी ने उसकी दोनों बेटियों आशा और उषा की पढ़ाई के लिए उन्हें ताकीद की थी।
उन्होंने बताया कि दोनों लड़कियों ने कॉलेज तक पढ़ाई की और अब वो दोनों नौकरी करती हैं। एक बैंक में और एक एनजीओ में। चिदानन्द ने लिखा, “गौरी लंकेश के कारण आज सैकड़ों आशा और उषा हैं।”
चिदानन्द ने कहा, “गौरी उनके लिए लेफ्टिस्ट, रेडिकल, हिंदुत्व-विरोधी और सेकुलर नहीं थी बल्कि दोस्ती, पहला प्यार और सादगी का सर्वोच्च उदाहरण थी”।