सुप्रीम कोर्ट ने मुल्क में Gay Relationship को जुर्म के जुमरे में रखने के मुताल्लिक अपने फैसले पर फिर से गौर करने करने से मंगल के रोज़ इनकार कर दिया। अदालत ने कहा था कि पार्लियामेंट चाहे तो इस ताल्लुक में कानून में तरमीम कर सकती है।
जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस एस जे मुखोपाध्याय की बेंच ने चैंबर में दिसंबर 2013 के फैसले पर फिर से गौर करने के लिये मरकज़ी हुकूमत और गैर सरकारी तंज़ीम नाज फाउण्डेशन की दरखास्त खारिज कर दी। आली अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि Unnatural sexual offense से मुताल्लिक ताजीरात ए हिंद की दफा 377 गैर आइनी नहीं है।
मुल्क में Gay Relationship के हामी कम्युनिटी को 11 दिसंबर, 2013 को उस वक्त बड़ा झटका लगा था जब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मर्जी से कायम Gay Relationship को जुर्म के दायर रखने के मुताल्लिक दिल्ली हाई कोर्ट का 2 जुलाई, 2009 का फैसला रद कर दिया था।
अदालत के इस फैसले के बाद एक बार फिर Gay Relationship ताजीरात ए हिंद की दफा 377 के तहत जुर्म के दायरे में आ गये थे। इस जुर्म के लिये उम्र कैद तक की सजा का कानून है।
गैर सरकारी तंज़ीम नाज फाउण्डेशन ने इस फैसले के अमल पर रोक लगाने की गुजारिश करते हुये फिर से गौर करने की दरखास्त दायर की थी। इस तंज़ीम का कहना था कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद Gay Relationship के हामियों की पहचान आवामी हो गयी थी और अब उन पर मुकदमे का खतरा मंडरा रहा है।
मरकज़ी हुकूमत ने भी इस फैसले पर फिर से गौर करने के लिये दरखास्त दायर की थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने Gay Relationship को जुर्म के जुमरे में रखने से इनकार कर दिया था।