भारत में नवजात लड़कों के मुकाबले में लड़कियों की मरने की फ़ीसद अधिक है: यूनिसेफ

भारत में लड़कियों के साथ भेदभाव का मामला बहुत पुराना है। कार्यलयों और कारखानों में नहीं बल्कि खुद उनके घरों में भी होता है। यहाँ तक कि परवरिश के दौरान मां बाप खुद उस सुलूक को करते हैं।

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हद तो यह है कि पाने मासूम बच्चों कि इलाज के संबंध से भी माता पिता का यही सुलूक होता है। संक्युत राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि भारत में माता पिता नवजात बेटों के मुकाबले में बेटियों का इलाज करने से गुरेज़ करते हैं जिसके नतीजे में नवजात बच्चियों की मौत उनके पैदा होने के एक महीने के अंदर ही हो जाती है।

बच्चों के संबंध से काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ की ओर से मगलवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक नवजात बच्चियों की मौत भारत में सबसे ज़्यादा होती है। देश में हर साल 6 लाख नवजात बच्चियों की मौत होती है। यूनिसेफ ने भारत सरकार के आंकड़े के हवाला देते हुए बताया है कि नवजात बच्चियों की मौत का आंकड़ा हमारी ऑंखें खोलने के लिए काफी है।

5 साल से अधिक उम्र के समूहों में भी लड़कियों की संख्या अधिक है। हालाँकि दुनियां भर में जांच के मुताबिक 1990 से 2015 के बीच मौत की फीसद में लगभग 65 फीसद की कमी आई है। उसके बावजूद जो लड़के और लड़कियों के बीच इस भेदभाव में कोई कमी नहीं आया।