स्विटजरलैंड के अस्पताल ने कहा था नहीं बचा सकते जान, दिल्ली के डॉक्टर ने कर दिया चमत्कार

स्विटजरलैंड घूमने गए एक भारतीय डॉक्टर जब अचानक स्ट्रोक के शिकार हुए तो वहां के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए कि उनकी जान नहीं बचाई जा सकती है। बाद में किसी तरह भारतीय डॉक्टर वतन लौटे और दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज शुरू हुआ। अब वह होश में आ चुके हैं और उनकी हालत में सुधार हो रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि इस घटना से जाहिर होता है कि किस तरह जब भारत में मेडिकल स्टाफ को लगता है कि मरीज की जान बचाई जा सकती है तो वे इलाज में जोखिम भी ले लेते हैं। लेकिन पश्चिम में ज्यादातर इलाज प्रोटोकॉल के तहत होते हैं।
फीजिशन अजीत दूबे पिछले महीने अपनी गायनोकॉलजिस्ट पत्नी डॉक्टर नीता के साथ स्विटजरलैंड घूमने गए थे। 23 अगस्त को नीता ने ध्यान दिया कि उनके पति का दाहिना पैर कांप रहा है और वह सही से बात भी नहीं कर पा रहे हैं। नीता याद करती हैं, ‘मुझे शंका हुई कि कुछ तो गड़बड़ है, जिसके बाद मैंने मदद मांगी। कुछ ही मिनटों के भीतर एक हेलिकॉप्टर आया तो उन्हें लुसान मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल पहुंचाया गया।’

दूबे के दिमाग की जांच में पता चला कि बाएं हिस्से में खून का एक बड़ा क्लॉट दिखा जिसकी वजह से उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ। मेडिकल टीम ने ब्रेन में ब्लड सप्लाई बहाल करने के लिए क्लॉट हटाने वाले इंजेक्शन दिए। इलाज के दौरान 62 साल के दूबे की हालत और बिगड़ गई। उनकी खोपड़ी से खून बहने लगा, जो दुर्लभ स्थिति थी। खून बहने की वजह से ब्रेन में सूजन आ गई। आखिरकार उस नामी अस्पताल के डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए।

नीता कहती हैं, ‘डॉक्टरों ने मुझसे कहा कि मेरे पति मर रहे हैं।’ वह कोमा में थे। अगले 5 दिनों तक नीता स्विस डॉक्टरों पर दबाव बनाती रहीं कि वे उम्मीद न छोड़े और जो भी मुमकिन इलाज है, उसे जारी रखें लेकिन डॉक्टरों ने पूरी तरह हाथ खड़े कर दिए। इसके बाद परिवार ने दूबे को दिल्ली एयरलिफ्ट करने के लिए भारतीय दूतावास से गुजारिश की।

इस फैसले के बारे में नीता कहती हैं, ‘हमारे तमाम मित्र और सहकर्मी डॉक्टर हैं। उन्होंने यूरोप के सर्वश्रेष्ठ न्यूरोसर्जनों से संपर्क किया, लेकिन ज्यादातर जवाब नकारात्मक था। उसके बाद इंद्रप्रस्थ अपोलो के डॉक्टर सुधीर त्यागी ने कहा कि वे सर्जरी से इलाज की कोशिश करेंगे। उनका आश्वासन हमारे लिए काफी था और हम उन्हें दिल्ली लेकर आ गए।’

28 अगस्त की रात को दूबे को दिल्ली लाया गया। वह वेंटिलेटर पर थे और दवाइयों की हैवी डोज के जरिए उनके ब्लड प्रेशर को बरकरार रखने की कोशिश हो रही थी। अपोलो में सीनियर न्यूरोसर्जरी कंसल्टैंट त्यागी ने  अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘उस स्थिति में उनका ऑपरेशन संभव नहीं था, इसलिए हमने उनकी हालत में सुधार का प्रयास किया। मैं पूरी रात फोन पर अपडेट लेता रहा कि क्या अगले दिन उनकी सर्जरी की जा सकती है।’

तरकीब काम कर गई। दवाइयों से दूबे का ब्लड प्रेशर सामान्य हो गया। इसके बाद उनके ब्रेन की सर्जरी शुरू की गई। खोपड़ी के एक हिस्से को निकाला गया ताकि ब्रेन पर पड़ रहे प्रेशर से राहत मिले। धीरे-धीरे सूजन कम हो गई। त्यागी बताते हैं, ‘सर्जरी करीब साढ़े 3 घंटों तक चली। दो हफ्ते से ज्यादा वक्त हो गए और डॉक्टर दूबे न सिर्फ जिंदा हैं बल्कि उनमें सुधार भी हो रहा है।’

फिलहाल मेडिकल टीम का फोकस इन्फेक्शन रोकने और उनके अंगों के सही तरीके से काम करना जारी रखने पर है। अभी उन्हें बोलने या अपने आप चलने में वक्त लगेगा लेकिन एक ऐसे शख्स जिसे चंद दिनों का मेहमान बताया गया था, उनका जिंदा रहना अपने आप में एक चमत्कार है।