अब गोवा के आर्कबिशप का मोदी सरकार पर हमला, कहा- विकास के नाम पर कुचला जा रहा है

अगले साल देश में आम चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में गोवा के मुख्य पादरी फिलिप नेरी फेरारो ने सभी चर्चो को सलाह दी है कि वह राजनीति में सक्रिय भागीदारी निभाएं क्योंकि भारतीय संविधान खतरे में है और सभी पर एक तरह की संस्कृति थोपने की कोशिश की जा रही है। ईसाई समुदाय को लिखे गए एक पत्र में उन्होंने कहा कि संविधान को ठीक से समझा जाना चाहिए, क्योंकि आम चुनाव करीब आ रहे हैं। उन्होंने 1 जून से पादरी वर्ष (पैस्टोरल ईयर) की शुरुआत के मौके पर जारी पत्र में गोवा एवं दमन क्षेत्र के ईसाई समुदाय को संबोधित किया गया है और इस पत्र में यह लिखा है।

साल 2018-19 के जारी किए गए पत्र में फेरारो ने लिखा है, ‘यह सलाह दी जाती है कि वफादार राजनीतिक क्षेत्र में एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं, उन्हें निभानी चाहिए। हालांकि ऐसा करते समय अपने विवेक के निर्देशों का पालन करें और खुशामद राजनीति से किनारा करें। इससे जहां एक तरफ लोकतंत्र मजबूत होगा वहीं दूसरी ओर राज्य प्रशासन के कामकाज में सुधार लाने में मदद मिलेगी। सामाजिक न्याय के आदर्श और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।’

फेरारो ने आगे कहा है कि पूरे देश के लोगों को अपनी जमीन और घरों से विकास के नाम पर बाहर निकाला जा रहा है। पादरी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि मानवाधिकारों को रौंदा जा रहा है। हालिया समय में हमने देखा है कि देश में एक नया ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। जिसमें हम क्या और कैसे खाते हैं, क्या पहनते, रहते और कैसे पूजा करते हैं उसमें एकरूपता की मांग की जा रही है। यह एक तरह की संस्कृति थोपने की कोशिश है।

फेरारो का पत्र उस समय सामने आया है जब कुछ हफ्तों पहले दिल्ली के प्रधान पादरी अनिल कोटो ने एक पत्र लिखकर कहा था कि भारत एक अशांत राजनीतिक माहौल का साक्षी बन रहा है और समुदाय को आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक प्रार्थना अभियान चलाना चाहिए। कोटो के बयान की काफी आलोचना हुई थी।

यह पहली बार है जब फेरारो ने खुलेतौर पर गोवा के कैथोलिक चर्चों से आग्राह किया है कि वह चुनाव के लिए तैयार हो जाएं। राज्य की 1.5 मिलियन जनसंख्या में कैथोलिक की संख्या 25 प्रतिशत है। अपने पत्र में फेरारो ने लिखा है कि कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया ने अपनी पूर्ण सभा में घोषित किया था कि चर्च को धर्मनिरपेक्षता, बोलने की आजादी और भारतीय संविधान के अनुसार हर किसी को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए खड़ा रहना चाहिए।