जमीअत उलेमा ए हिन्द देश की एसी एकमात्र संगठन है जो आज़ादी से पहले भी एक अहम मोकाम रखती थी और आज़ादी के बाद भी अपना भरपूर भूमिका अदा कर रही है। इसकी यह भूमिका देश की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक शैक्षिक व धार्मिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। मिल्लत में एकता का मुद्दा हो या फिर देश में शांति व भाईचारे के बढ़ावा का, जमीअत उलेमा ए हिन्द हर हर मौके पर अपना फर्ज़ बेहतर तरीका से अंजाम देती नज़र आती है। संगठन अपना सफर कमियाबी के साथ तय कर रही है। मौलाना सैयद अरशद मदनी ने मिल्लत के धार्मिक अस्तित्व के साथ साथ देश में एकता व भाईचारे को बरकरार रखने की हमेशा कोशिशें की हैं।
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देश के सम्मान, शांति , एकता व भाईचारे के लिए मौलाना मदनी हर समय खुद को तैयार और व्यस्त रखते हैं। वह मुसलमानों को एक एसी इकाई के तौर पर देखते हैं, जिसके बगिअर भारत की कल्पना ही संभव नहीं। मौलाना मदनी को भारत की संयुक्त संस्कृति व विरासत पर न सिर्फ गर्व है बल्कि वह उसे धार्मिक व सांस्कृतिक एकता का स्रोत भी क़रार देते हैं। पिछले दिनों उन्होंने “वियाना” में विश्व अंतरधार्मिक सम्मेलन में शामिल की थी, जिसमें उन्होंने धर्म के नाम पर होने वाली अतंकवादी की खुले शब्दों में निंदा की और विश्व स्तर पर पढ़ते हुए धार्मिक हिंसा को इंसानियत के लिए एक बड़ा खतरा करार दिया।
मौलाना मदनी ने कहा कि देश के स्थिति खराब हैं कि बल्कि मैं तो यह कहूँगा कि इस तरह के हालात तो देश की बंटवारे के समय भी पैदा नहीं हुए थे। मारकाट और रक्तपात तो हुई मगर सामाज साम्प्रदायिक बुनियाद पर बंटा नहीं हुआ था मगर अब स्थिति यह है कि एक खास विचारधारा को देश पर थोपने की कोशिश हो रही है और हर शख्स को मजबूर किया जा रहा है कि वह इस विचारधारा को स्वीकार करे। लोकतंत्र में तानाशाही की यह रवैया आगे चलकर किस कदर घातक हो सकती है, इस बारे में सोचकर ही दहशत होती है। संविधान की निर्देश को नजरअंदाज कर के देश की अखंडता और एकता पर चोट पहुंचाई जा रही है। शहरों से लेकर गांवो तक सामाजिक एकता को तोड़ने की साजिशें हो रही हैं।