नई दिल्ली: तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखा है। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल की ओर से कहा गया कि सरकार तीन तलाक पर कानून लाना चाहती है। सरकार के इस प्रस्ताव पर मुसलमानों ने आपत्ति जताई है। मुस्लिम उलेमाओं के मुताबिक़ जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तो अब इस सिलसिले में कानून बनाने का क्या मतलब है।
न्यूज़ नेटवर्क समूह न्यूज़ 18 के मुताबिक मशहूर इस्लामी संस्था दारुल उलूम नदवातुल उलेमा के मुफ्ती हसन मंसूर ने कहा कि पहले तो सरकार ने कहा था कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला होगा वह हमें मंज़ूर होगा, पर अब अगर सरकार कह रही है कि हम कानून लाएंगे, फिर यह तो सरासर गलत है। पहले उन्हें कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए, वैसे तो वह सरकार है जो चाहे कर सकती है।
मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी का कहना है कि सरकार का उद्देश्य केवल शरीयत कानून से छेड़छाड़ करना है, जिसमें सरकार को अदालत में अपना उद्देश्य पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा है। अपने इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकार कानून लाने की बात कर रही है, लेकिन हम इस कानून को भी चुनौती देंगे।
दारुल उलूम के मुफ़्ती एहसान का कहना है कि तीन तलाक को सरकार शायद मजाक समझ रही है, यह शरीयत से जुड़ा मामला है, बेहतर होगा सरकार सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सुनवाई पूरी कर लेने दे, जब आप कानून की बात करते हैं तो कानूनी तौर पर ही उस पर बातचीत भी होने दें.
आल इण्डिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अधयक्ष शाइस्ता अंबर का कहना है कि केंद्र सरकार की बात करें तो वे पूरी तरह से तीन तलाक के मामले में राजनीति कर रही है। जब मामला कोर्ट में है, तो कानून बनाने की बात करना बेमानी है। सरकार कोर्ट में अपने विश्वास को बनाकर रखे, अगर कानून लाना ही है तो कुरान की रोशनी में मुस्लिम मैरिज एक्ट बनाया जाए।