उर्दू को समझने के लिए इसके करीब आइये, दिल को ही नहीं रुह को भी छू जायेगी- शबाना आज़मी

नई दिल्ली। हिंदुस्तान में 60 के दशक तक 90 फीसदी लोग उर्दू जबान बोलते थे, लेकिन उसके बाद इसे मजहबी रंग दे दिया गया और यह मुसलमानों की भाषा बन कर रह गई। यह पूरे हिंदुस्तान की भाषा है, सिर्फ मुस्लिमों की नहीं।

इस मीठी जुबान का मजहब से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्मों में मुस्लिम परिवारों को हकीकत से इतर पेश किया गया है जो कि एक दम गलत है।

उर्दू को समझने के लिए इसके करीब तो आइये, दिल को ही नहीं रूह को भी छू जाएगी। यह बात जश्न ए रेख्ता के दूसरे दिन शामिल हुई अभिनेत्री शबाना आजमी ने कही।

मेजर ध्यान चंद स्टेडियम में चल रहे इस उर्दू पोएट्री फेस्टिवल में शनिवार को बॉलीवुड से शबाना के साथ वहीदा रहमान, मुजफ्फर अली, नवाजुद्दीन, जावेद अख्तर और शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल मुख्य आकर्षण रहे।